Monday, July 30, 2012

एक लघुकथा 

किसी शहर में एक भला आदमी हुआ करता था / अमीर भी था / बड़ा सा बंगला , बड़ी बड़ी गाड़ियाँ, आलीशान बगीचा जिसमें तरह तरह के फूल और फल के पेड़ थे / घर का काम देखने के लिए नौकर, रसोईया, ड्राइवर, माली सब थे / सभी से बड़ा ही आत्मीयता पूर्ण वर्ताव और सभी पर बहुत विश्वास था उनका / नौकर भी बड़े वफादार थे , ऐसा उन्हें लगता था /

एक बार गर्मी की छुट्टियों में वह सपरिवार किसी हिल स्टेशन पर गए हुए थे / ड्राइवर ने देखा कि माली पेड़ों से आम तोड़ कर चुप चाप एक टोकरी में भर रहा है / उसने रसोईये को बताया और दोनों ने माली को जा दबोचा / उसे काफी खरी खोटी सुनायी और कहा, साहब नहीं हैं घर में और तू उनके साथ गद्दारी कर रहा है, शर्म नहीं आती तुझे ? आने दे साहब को उन्हें बता देंगे / माली कुछ पल उन्हें निहारता रहा और फिर कहा, मैं गद्दार हूँ न ? साहब को बता दोगे तुमलोग ? और ड्राइवर भैय्या तू जो गाडी से पेट्रोल चुराता है वह क्या मुझे पता नहीं ? और बावर्ची भैय्या तू जो रोज़ शाम को घर जाते हुए अपने झोले में भरकर अपने घर के लिए राशन ले जाता है , क्या वह मैंने नहीं देखा ? तुम करो तो कुछ नहीं और मैं करूँ तो गद्दारी ? अब ड्राइवर और रसोईया के हाथ पैर फूल गए / फिर तीनों ने समझौता किया और आगे भी वैसा ही करते रहेंगे यही तय किया , मालिक को उल्लू बनाने के लिए /

मित्रों सोचिये इस गणतंत्र में क्या हम आम जनता मालिक नहीं और सब भ्रष्ट नेता इस माली, ड्राइवर और रसोईये की तरह नहीं ? आखिर कब तक यह सारे अपने बीच समझौते करते रहेंगे और हमें उल्लू बनाते रहेंगे ? / अब तो जागिये ..../ कब तक बेईमानों के हाथों पिटते रहोगे ? अपने को इतना भी शरीफ न बनाओ कि यह लोग तुम्हे डरपोक समझें

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