Monday, July 30, 2012

madam ke samne

२००४ से ले कर २०१२ - पूरे ८ साल बीत गए, इसके उसके समर्थन से सरकार की गाडी चल रही है , और उसके पहियों के नीचे हम कराह रहे हैं / अन्य सभी पार्टी बीच बीच में दिखावे के लिए शोर मचाते हैं फिर घुटने टेक देते है / राष्ट्रपति चुनाव प्रकरण में भी वैसा ही हो रहा है /३ हफ़्तों से चल रही नौटंकी का पर्दा भी गिर गया जब "तेरी मेरी चलेगी"( TMC) पार्टीने भी अपना समर्थन के घोषणा कर दी./ हम कर ही क्या सकते हैं जब हकीम ही ज़हर की गोलियां हमारे मुंह में ठूंसे ? एक गीत तो लिख ही सकते है न ? मूल गीत है "परदेसियों से न अखियाँ मिलाना :"/ यह गीत किनके लिए लिखी गयी है कहने की कोई ज़रुरत ही नहीं 

मैडम के सामने कोई कुछ भी न बोलना 
एक वही तो हम चमचों का है ठिकाना , मैडम के -----
हम सब उनके जानवर पालतू
औकात उनकी, हम सब फालतू
उनके मेहर से मिले पानी और दाना, मैडम के ----
एक पट्टी हमें पढ़ाई गयी है
उनके चरण के बिना ठौर नहीं है
फ़र्ज़ है उनकी जूठन को चाटना , मैडम के -----
कंधे पे हमारे रख कर के बन्दूक
दबा के बैठी है कालाधन का संदूक
किया होगा उसने हमपे कोई जादू टोना, मैडम के ---
वह है विदेशी जानते हम भी
तुम्ही बताओं क्या करें हम ही
देशप्रेम से नहीं कुछ है मिलना , मैडम के ---
आप सब जाने हैं हम कांग्रेसी
बल न गयी चाहे जल गयी रस्सी
देश डूबने खोजे हम तो बहाना, मैडम के --

* अब शायद इन का ध्येय गीत यही रह गया है
जहाँ तक मेरी जानकारी है, देश में जितने भी अपराध होते हैं उनके पीछे सबसे बड़ा कारण होता है आर्थिक फायदा / ज़मीन जायदाद के बंटवारे को ले कर रिश्तेदारों में झगडा और खून की घटनाएं , पुरुष द्वारा अपने ही परिवार की महिलाओं या अन्य महिलाओं को देह व्यापार में घसीटना आदि से ले कर सरकारी कार्यालयों में अपने पद का दुरुपयोग कर रिश्वत खाना और देश की सुरक्षा से सम्बंधित दस्तावेज देश के दुश्मनों को बेच देने तक , सब के पीछे आर्थिक लाभ ही एक मात्र उद्देश्य रहता है / पर इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि पकडे जाने पर और वह भी रंगे हाथों यही लोग मजबूरी का राग अलापते हैं और अपने को मासूम और बेगुनाह प्रमाणित करने का ढोंग शुरू कर देते हैं / कहीं कहीं पर यह सफल भी हो जाते हैं / ऐसा ही एक काल्पनिक किस्सा प्रस्तुत है / 

एक आदमी था जिसे हराम की खाने की आदत पड़ गयी थी / दिन भर सारे शहर में घूमता था और जहाँ भी मौका लगे हाथ साफ़ कर देता था / एक दिन कहीं कुछ न मिला/ दिन के ३ बजने वाले थे , देखा एक दूकान दार का खाने का डिब्बा रखा हुआ है और वह हाथ धोने गया हुआ है / उसने डिब्बा उठा लिया और भागा, पर पकड़ा गया/ अदालत में केस चलते वक़्त उसके वकील ने सफाई दी , हुज़ूर मेरा मुवक्किल भूखा था इस लिए उसने सिर्फ खाना ही चुराया वर्ना वहीं पर नोटों से भरा एक ब्रीफकेस भी रखा था जिसमें लाखों रुपये थे/ अगर यह चोर होता तो उसे न ले भागता ? जज ने देखा की वह आदमी जोर जोर से रो रहा है , दया दिखा कर उन्होंने उसे रिहा कर दिया / अदालत से बाहर आ कर वकील ने आदमी से पूछा तुम रो क्यों रहे थे ? क्या तुम्हें पश्चाताप हो रहा था ? / इसने जवाब दिया अजी साहब पश्चाताप तो हो रहा था ज़रूर पर अपनी करनी पर नहीं बल्कि इस बात को ले कर कि मैं वह ब्रीफकेस देख कैसे नहीं पाया ? / हमारे देश के बेईमान नेता और इस चोर में कोई फर्क नज़र आता है क्या आपको ? / और हम भी उस जज की तरह दया दिखाते रहते हैं न हर बार चुनाव में / ग़लत कहा क्या मैंने ?
ज़रा ग़ौर करो
कौन है भिखारी (एक लघु कथा)

शहर की बढ़ती हुयी आबादी को देखते हुए सरकार ने राजमार्ग को शहर के दोनों छोर से मिलाने के लिए , बाई पास बनवा दिया / वहीं एक मंदिर भी बन चुका था और एक डिग्री कालेज भी स्थापित हो चुकी थी / मंदिर के बाहर एक बुढा अपाहिज भिखारी बैठा लोगों से दया की भीख मांग रहा था / कोई एक आध सिक्का उछल देता था उसकी तरफ तो कोई प्रसाद में लगाये गए केले या संतरे का एक हिस्सा दे देता था / कुछ ऐसे भी थे जो उसे हिकारत की नज़र से देख रहे थे, मानो वह इस धरती पर बोझ बनके जी रहा है /
अचानक एक जोर की आवाज़ से इलाका गूँज उठा / सभी ने देखा कि तेज़ी से जा रहा एक ट्रक पेड़ से टकराकर उलट चुका है / पास जा के देखा तो ट्रक का खलासी गाडी के नीचे दब कर दम तोड़ चुका है और ड्राइवर ज़ख़्मी हालत में छटपटा रहा है / एकी बुजुर्ग ने कहा अरे इसे अस्पताल ले चलो कोई /
तभी एक आवाज़ आयी , अरे भाइयों आओ आओ, यह ट्रक तो साबुन और चाय की पेटी से भरा पड़ा है / सभी भागे भागे गए / जिससे जितना बन पड़ा माल समेटने लगा / कोई उन्हें रोकनेवाला जो न था / पुलिस के आने से पहले हर कोई चाहता था कि अधिक से अधिक माल अपने कब्ज़े में कर ले / भगवन की पूजा करने आये धार्मिक लोग भी उस भेद में शामिल हो गए और कालेज के विद्यार्थी भी अपने क्लास छोड़ कर भाग आये मौके का फायदा उठाने / किसी को इतनी फुर्सत न थी कि तड़प रहे ड्राइवर को दो घूँट पानी का पीला दें /
दूर बैठा "धरती का बोझ" वह भिखारी सोच रहा था , कि जिनसे वह दया की भीख मांग रहा था वह भिखारी हैं या लूटेरे ? पर उसके पास कोई जवाब नहीं था / आपके पास है क्या ?
Mitron jaante hain, aaj ke din ka mahatwa kya hai . Koi kahenge ki Bharat ka naya Rashtrapati chunne ke liye aaj matadaan hua, koi kahega ki Rajesh Khanna ki antyeshti huyee .

Par mitron vastav men aaj ke din 1969 men (43 saal pehle) desh kee arth-vyavastha ko matiyamet karne ke liye Haramkhor Congressiyon kee daadee amma ne 14 bade bade Bankon ka Nationalisation karke desh ka bantadhar karne kee shuruat kee thee. Jiska parinaam aisa hua .
1) Pehle to LOAN MELA karke sarkaarne Bank ke Dhan ka khula durupayog kiya apne swarth ke liye 
2) Phir usee loan kee maafe karwake badee waah waahee batoree 
3) Apne Chelon chamchon ko Bankon se loan dilwane ka har jugaad kiya jo wapas he naheen aaya
4)Bank kee sankhyan badhtee gaye par usmen niyukti na badhee aur kaamgaaron par kaam ka bojh badhne laga
5) Is ka fayda utha kar Asadhu Bank karmiyon ke madhyam se Bankon men Dhokhadhade ke naye naye maamle saamne aaye
6) Jis uddeshya se Rashtriyakaran hua tha woh to ek sapna reh gaya . Na SOCIAL na hee ECONOIMIC koi development naheen hua aam janta ka
7) Bade bade audyogik aur vyaparik gharane Bank ka loan dabakar baith gaye aur Congress party ko fund supply karte rahe
8) Jahan jahan bhee grameen shakhaayen khulee sab ghaate par chalne lagee aur fayda mila Asadhu Bank Officer aur local dalalon ko

Phir bhee Bank Rashtriyakaran ke geet aaj bhee gaate hain log. Dhanya hai yeh Bhed Chaal . Aur usee tithi se agla Rashtrapati bhee chune jaane ka matdaan ho gaya . Jaane aur kitnee badkismatee kee maar jhelne ehai Janta ko ....
मित्रों एक विचित्र प्रजाति का प्राणी उत्पन्न हुआ इस देश में और तेज़ी से अपने संख्या बढ़ता जा रहा है / उस प्राणी को कुछ लोग "सेक्युलर" कहते हैं , पर उनकी मानसिकता और वास्तविकता देखते हुए मैं उन्हें "शेख - हुल्लड़ " कहता हूँ ,क्यों कि यह शेखी बघारने में माहिर हैं और हुल्लड़ मचाने में भी / और इनका एक ही मूल धर्म है शेखों का साथ देना / तो क्यों न आज उन पर एक रचना हो जाए /

मैं हूँ सेक्युलर - धरम का ठेकेदार
चाशनी में ज़हर घोल कर बाँटूं नकली प्यार 
मैं हूँ सेक्युलर - धरम का ठेकेदार------
मेरे अपने भाइयों का मुझको फ़िक्र है नहीं
अपने स्वार्थ छोड़ कर कुछ मैंने सोचा नहीं
पुरखों को जो गाली दे, दूं मैं उसको पुरस्कार
मैं हूँ सेक्युलर - धरम का ठेकेदार-----------
वह जो मेरे सगे हैं, भागता हूँ दूर उनसे
मारते जो हैं लात मुझे, चाटूं तलवे उनके
वर्ना कहो चलेगी कैसे अपनी सरकार
मैं हूँ सेक्युलर - धरम का ठेकेदार-------------
धर्म-कर्म न मानूं यह तो है एक बीमारी
इफ्तार की दावत रखूँ तो वह है समझदारी
संस्कृति की बातें सुनकर चढ़ता मुझे बुखार
मैं हूँ सेक्युलर - धरम का ठेकेदार-----------
नाम के पाक जो हैं, मन के गंदे हैं बड़े
वह आये इस देश में तो अपने मौज हैं बड़े
वोट ले कर उनका ही बना मैं साहूकार
मैं हूँ सेक्युलर - धरम का ठेकेदार-------------
न हिन्दू न मुस्लिम कोई मेरा नहीं अपना
इनको लड़कर देखूं तमाशा काम है यह अपना
समझ सके कोई मेरी चाल को कौन है होशियार
मैं हूँ सेक्युलर - धरम का ठेकेदार-----

तो भाईओं कुछ ग़लत आकलन तो नहीं किया न मैंने इनका ?
Parivar men jinhe SAIBABA par shraddha hai unke liye ek Bhajan prastut hai , jo maine mool roopse SAI group men post kiya hai 

मित्रों , बहुत दिनों के बाद एक भजन प्रस्तुत कर रहा हूँ आप सब के लिए , अगर २ शब्द आप इस पर लिखें तो मुझे प्रेरणा मिलेगी 

खोल के मुख न माँगना तू , जानते हैं सब कुछ साईं 
तेरी नेकी और बदी का लेखा ,हरदम पढ़ते हैं साईं ----1
धन दौलत की चाह न रखना, साथ तेरे न जाएगा
मन का शीशा साफ़ तू रखना,जिसमें बसते हैं साईं ----2
अपनी फिक्र में खोया हो जो, बाबा को क्या पायेगा
आग पराई में जल जाये जो,चाहते उसको है साईं ----3
भेद-भाव तू दिल से मिटा ,बन्दों से करता जा प्यार
रख श्रद्धा तू देखे जिसको, हर घट में बसते साईं -----4
फलकी चिंता तजके मनसे , नेकी करता जा "कुन्दन"
कर्म तेरा जो हो खरा देखना , आयेंगे तेरे घर साईं -----5
एक लघु कथा 

उसे जब कठघरे में लाया गया , उसे देख कर ही हाकिम के त्योरियां चढ़ गयी. / वकील के कुछ बोलने से पहले उन्होंने मुलजिम से कहा, आज मैं तुम्हें पांचवीं बार देख रहा हूँ/ पढ़े लिखे हो, देखने में हट्टे कट्टे हो और चेहरे से लगता नहीं कि तुम्हे अच्छे परवरिश न मिली हो / तो फिर बार बार चोरी करके पकडे जाते हो और यहाँ क्यों आते रहते हो / कोई ढंग का काम क्यों नहीं करते ?

मुलजिम ने आँखों में ढेर सारी उदासी और होठों पर फीकी से मुस्कराहट ला कर कहा, साहब जानते हैं समाज में सबसे सस्ता क्या है, जी वह है नसीहत / आप मेरी जगह होते और मैं आपकी जगह होता तो शायद मैं भी ऐसा ही केहता जैसा कि आप कह रहे है ? पर साहब आपको पता है बाहर की दुनिया का हाल ? कौन सा काम करूँ ? सरकारी नौकरी में आरक्षण ने हमें न घर का छोड़ा न घाट का / निजी क्षेत्र में हमारे लिए कोई जगह है नहीं / सोचा था कि राजनीति में उतर कर कुछ बदलाव लाऊंगा पर वहां भी परिवारवाद हावी है / विश्वविद्यालय में पढ़ते समय इंटर यूनिवर्सिटी ड्रामा कम्पीटीशन में श्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार जीता था मैंने , पर फिल्म उद्योग भी निजी क्षेत्र बन गया है , बड़े बाप के बेटे ही वहां मौका पाते हैं / लेखन का शौक था पर प्रकाशन संस्था केवल प्रशासनिक अधिकारीयों के लिखे हुए ही छापते हैं, आखिर उन्हें भी अपने पेट की चिंता करनी होती है न ? थक हार कर मजदूरी करने निकला तो तो हर किसीने कहा पढ़े लिखे हो तुमसे क्या मेहनत होगी ?

तो फिर आप ही बताइए जिंदा कैसे रहूँ / अगर भगवान् ने पेट न दिया होता और भूख न दी होती तो शायद यह हाल न होता मेरा / ऊपर से घर परिवार में ताना निकम्मा होने का / बताइए आप मेरी मदद करेंगे कोई इज्ज़त की कमाई करने के लिए / हाकिम ने शर्म के मारे लाचारी से सर झुका लिया
मित्रों एक और साईं भजन प्रस्तुत है आपके लिए 

चिंता जग की तू छोड़ रे भोले, साईं पे ध्यान तू रखना सदा
होगी आसान हर मुश्किल रे, साईं पे ध्यान तू रखना सदा ---
खंडहर था ठिकाना जिसका, पर सबको मालामाल किया 
खोजे सामान तू ऐश का क्यों, साईं पे ध्यान तू रखना सदा ---
एक ही तख्ता ईंट सिरहाने , चैन की नींद में रहा मगन
कुछ तो सीख अरे उनसे तू , साईं पे ध्यान तू रखना सदा ---
जिसने किया बुरा भी उनका, उनसे भी किया उन्होंने प्यार
बैरका मैल न कभी मन में ला, साईं पे ध्यान तू रखना सदा --
कल की चिंता कर कर के , जोड़ता रहा तू कौड़ी हरदम
भूल के सब तू पूण्य कमा रे, साईं पे ध्यान तू रखना सदा ---
क्या इस पर सोचना नहीं चाहिए ?

आप सभी हिंदी फिल्म तो देखते ही होंगे / फिल्म में जो खलनायक रहता है , हज़ार तरीके निकलता रहता है सभी को किसी न किसी तरह परेशान करने के लिए / और आखिर में जब उसे सबक सिखाने के लिए कोई निकलता है तो उसे फ़ौरन मारने के वजाय हाथ में पिस्तोल ले कर उसे उसकी करतूतें सुनाता रहता है / इसी क्रम में वह उसके इतना पास चला जाता है कि खलनायक उसका पिस्तोल छीनकर उसीको मार डालता है / इस तरह के दृश्य हम कई फिल्मों में देख चुके हैं , फिर भी इससे हम सबक नहीं लेते / देश में कांग्रेस भी वही करती आयी है जाने कबसे , जिनसे खतरा दिखा उन्हें हमेशा के लिए सुलाना इनकी आदात बन चुकी है /चाहे वह अन्ना हो, बाबा रामदेव हो या कोई और व्यक्ति या संगठन हो , आखिर कांग्रेस को इतना मौका क्यों देते हैं संभलने के लिए / शत्रु को बचाव का मौका दे कर आक्रमण करना कहाँ की बुद्धिमानी है ? अगर सचमुच कुछ करना है तो बस "आर या पार" , वर्ना इस तरह के आयोजन से यह लोग जनता का विश्वास खो बैठेंगे धीरे धीरे और वही दानवराज अनंतकाल तक चलता रहेगा इस देश में / अगर टक्कर लेने की हिम्मत हो तो लढ़ पड़ो वर्ना चुप चाप तकदीर का रोना ले कर घर के कोने में पड़े रहो / याद है न जब कर्ण निशस्त्र हो कर रथ का पहिया निकल रहा था तभी उस पर तीर छोड़ने के लिए कहा था श्री कृष्ण ने अर्जुन से. ... सोचो ध्यान दो इस पर
हर कोई जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु एक दिन सुनिश्चित है, यह हर कोई जानते हुए भी मृत्यु से भागने का प्रयास बनाये रखता है / एक आदमी को लेने के लिए यमदूत आ पहुंचे कालफांस लिए हाथ में/ आदमी ने गिडगिडाना शुरू कर दिया / कहने लगा पहले से खबर तो दी होती ताकि मैं अपना सांसारिक काम ख़तम कर लेता / यमदूत ने कहा तुझे हमने खबर दी थी तू जान नहीं पाया तो दोष किसका ? / आदमी ने कहा, झूठ, कब खबर दी. ? / आदमी से यमदूतों ने कहा पहले तुझे आँखों से दिखना कम होने लगा फिर कान भी कमज़ोर पड़ने लगे, एक एक कर दांत गिर गए , सर के बाल झड़ने लगे, शरीर की चमड़ी पर लोच पड़ने लगे , चलने फिरने में उठने बैठने में तुझे तकलीफ होने लगी / यह सब तो तुझे सूचना थी कि तेरा समय समाप्त होने वाला है /

इसी कथा के सन्दर्भ में सोचिये, देश में लोकतंत्र की जो दुरावस्था हो रही है उसकी सूचना पा कर भी अगर जनता न जगी तो क्या इसी तरह के स्थिति एक दिन नहीं आयेगी ? तो मित्रों अब भी समय है जागो, नहीं तो बाद में केवल पछतावा ही हाथ लगेगा
एक फिल्म आयी थी हकीकत जिसमें एक गीत था "कर चले हम फ़िदा जानोतन साथियों" / आईये देखते हैं कांग्रेसी उसे कैसे गाते हैं 

कर चले हम फ़िदा स्वाभिमान साथियों
हमको मिलनी है ऊंची कुर्सी साथियों -----

आदर्शों का क्या और क्या है उसूल
पकडे रहने से रोते तो मिलती नहीं
देश में ऐसे लोगों को देखे हैं हम
जिनके सर पर छत भी तो होती नहीं
ऐसे पागल बनें हम क्यों कहो साथियों,-----
जिंदा रहना है जब तक हमें देश में
क्यों न लूटेंगे हम ज़िन्दगी का मज़ा
बुद्धि आत्मा, विवेक को जाओ रे भूल
तब ही बन पाओगे तुम तो यहाँ के राजा
गाँठ इस बात को बाँध लो साथियों ,---------
देश के खातिर मार्के है क्या फायदा
किसके खातिर तो मरता यहाँ कौन है
हाथ में हो पॉवर चाहे जैसे भी हो
सामने तेरे सरको उठता कौन है
हम ही धरती के भगवान् है साथियों , ------
देश लुटता रहे देखते हम रहे
विदेशी बैंक में कैसे बढ़ती रकम
भूखों मरती रहे देश के जनता
उनके पैसों से मौजें उड़ाते हैं हम
धन्य हम है पाके ऐसा जनम साथियों ,-----
मवाली गुंडों की लेते हैं हम मदद
ताकि कुर्सी पे ताउम्र बैठेंगे हम
खाक हो जाए देश, जनता होवे शेष
लाशों पे बैठ कद को बढ़ातें है हम
हम तो खुद ही में रहते मगन साथियों,-------

* कांग्रेसियों का चरित्र यही है न मित्रों ?
एक प्यार भरा अनुरोध मिला था मुद्गल जी से कल कि मैं एंडी (ND पर एक पैरोडी लिखूं, तो अनुरोध को अस्वीकार किया नहीं जा सकता न/ लीजिये प्रस्तुत है / 
यह गीत एक जायज़ बेटा अपने नाजायज़ बाप को सुना रहा है / मूल गीत है "मुस्करा लाडले" फिल्म ज़िन्दगी से .../ बक्से में और भी हैं सामान अभी 

रोना मत रे बुड्ढे मत रोना 
रोना मत रे बुड्ढे मत रोना 
जितने भी पाप किये थे तुने अब तक
फल उसका तो तुझको है पाना , रोना मत रे बुड्ढे मत रोना
थमे न आंसू, आँखों से तेरी कभी
देखे जहाँ तुझे थूकें तेरे मुंह पे सभी
मालिक से है यह दुआ , है यह दुआ
जितने भी पाप --------------------
तुझको जो देखा, तेरे पाप दिखने लगे
सारे गुनाह तेरे याद मुझको आने लगे
आया है वक़्त -इ - सज़ा , वक़्त-इ सज़ा
जितने भी पाप ------------------
भगवन का रख नाम शैतान तू तो बना
रहता नहीं वक़्त एक जैसा यह न जाना
अपने हाथों मिटा गया, तू मिट गया
जितने भी पाप------------
ब्रह्माण्ड में ३ लोक होते हैं / व्याकरण में ३ काल और ३ पुरुष / तो फिर पैरोडी भी ३ क्यों न हो / एक और पेरोडी नाजायज़ बाप पर / मूल गीत है फिल्म " संगम" का "दोस्त दोस्त न रहा " / मैंने कल लिखा था अगर यह व्यक्ति आज कांग्रेस पार्टी के किसी जिम्मेदार पद पर होता तो शायद यह साफ़ बच निकलता / तो बेचारे का क्षोभ पढ़िए , कितना दर्द है पढ़िए ...दूध से निकली मक्खी का दर्द ---

मित्रों इस पैरोडी में मैंने तिवारी के दर्द के माध्यम से कांग्रेस वालों के मतलबी और स्वार्थी चरित्र को उजागर करने की कोशिश की है / आशा है आप इसे पसंद करेंगे 

अब वह पार्टी न रही , अब वह वक़्त न रहा 
अपने ही लोग बैठे चुप , मैं तमाशा बन गया --------
वह ग़लती एक हो गयी , किसने कहो किया नहीं
सभी ने की पार्टी में है, क्या तुम नहीं
ज़रा सी मौज मस्ती की, किसने कहो किया नहीं
सभी ने की पार्टी में है, क्या तुम नहीं
कुर्सी पर रहे जो नहीं, सबको मौका मिल गया
अपने ही लोग बैठे चुप, मैं तमाशा बन गया ----------
कभी तो शान थी अपनी, न जाने कितने चमचे थे
उन्ही में यह ही सब तो थे, क्या थे नहीं
थाली के बैंगन बन गए, तनहा हमें यह कर गए
उन्ही में यह ही सब तो थे, क्या थे नहीं
यह सोच के क्या फायदा, क्यों साथ इनका ही दिया
अपने ही लोग बैठे चुप, मैं तमाशा बन गया ----------
एक और पैरोडी फिर वही नाजायज़ बाप के ऊपर. / आपको याद होगा एक फिल्म आयी थी सगीना जिस में एक गीत था "साला मैं तो साहब बन गया " /दिलीप कुमार पर फिल्माया गया था यह गीत और बीच बीच में ओमप्रकाश जी की आवाज़ थी ताना मारते हुए / उसी गीत पर आधारित है यह पैरोडी. / तो सुनिए 

- साला मैं तो बाप बन गया 
बाप बनके सांप सूंघ गया 
यह डी एन ए का रिपोर्ट
और राय दे दिया कोर्ट
जैसे मेरा भट्टा बैठ गया --------
-वाह रे बुड्ढे - वाह रे बुड्ढे -
बाप बनके देखो कैसे उछले
जो किये थे पाप तूने फल उसका अब पा ले
-मुझे पे दुःख की मार देख कर देखो सब हँसते हैं
फेस बुक पर क्या क्या देखो मुझको ले लिखते हैं
हाल मेरा क्या यह हो गया , साला मैं तो बाप बन गया ----------
- सुन रे बुड्ढे - सुन रे बुड्ढे
छोड़ भजन तू डूबा था मस्ती में
जिनको तूने उजड़ा था कल, आज तू उस बस्ती में
- होता जो मैं आज भी मंत्री , बात ऐसी न होती
नीलामी पर बिकती मिडिया साथ में मेरे होती
दोस्त दुश्मन बन गया , साला मैं तो बाप बन गया ---------
- नेता था तू , नेता था तू
काम था था तेरा आदर करता सबका
माली बन कर उजाड़ डाला बाग़, जिम्मा था तुझपे जिसका
- अपने पार्टी के नेताओं ने जो कुछ पहले किया था
मैं तो उनके पद-चिन्हों पर चलता ही आया था
पकड़ा बस मैं ही गया , भाग मेरा देखो फूट गया .........
वीणा जी / दीनेश जी एवं अन्य सभी मित्रों ,

कल मैंने जगन्नाथ जी पर १ भजन पोस्ट किया था, जिसे कई मित्रों ने पसंद किया और उस पर टिप्पणी भी की , बहुत प्रसन्नता हुयी / 
आज सुबह सोचा क्यों न अपने गुरूजी पर कुछ लिखने का प्रयास करूँ / गुरूजी ने जिन फिल्मों में गीत लिखे उन्ही के नाम को मिला कर  एक प्रयास किया है, देखिये अगर आपलोगों को पसंद आ गया तो मेरा प्रयास सफल हुआ मानूंगा मैं/ फिल्मों के नामों - " " के बीच रखा है

श्री गुरु वंदना

"बरसात" के बनके वह "बादल", "काली घटा" जैसे छा गए
"पूनम" का "चाँद" कहलाये "बसंत बहार " यूँ वह गा गए //

"आस" का "दीप जलता रहे" दिखलाए "किस्मत के खेल "
"आवारा", "श्री ४२०" का यारों "चोरी चोरी " करवाए मेल //

कहते रहे "दिल एक मंदिर" चाहे "शिकस्त" मिले चाहे "दाग"
ऐसे थे वह "आस का पंछी" , किसीके सामने भरी न तो "आह" //

"बादशाह" थे "नगीना" थे "कन्हैया" थे वह प्यारे हम सब के
"करोडपति" तो वह थे मनके ,"आशिक" हम सब थे उनके //

"प्यार मोहब्बत" और "अमन" के "हमराही" वह "लाट साहब"
"प्रोफ़ेसर " थे "गाईड " भी थे , कोई कोई कहे "छोटे नवाब" //

"छोटी छोटी बातें" बनाके जरिया वह बातें ऐसी कह जाते थे
"नया घर " "आनंद मठ " वह "रात और दिन" बनाते थे //

"दूर का राही" "तीसरी क़सम" खा के ,चला "ममता की छाँव में"
"विधाता नाच नचावे" कैसे दिखला गया हमको वह "नई राहें "//

ओ मेरे "मासूम " "अनाडी " यह "दिल तेरा दीवाना" तो है
"शैलेन्द्र" ही है नाम संगीत का कहता यह सारा ज़माना है //

मैंने मात्र ४१ फिल्मों का उल्लेख किया है इसमें, "गुरूजी" की अनगिनत फिल्मों में से /
अगर आपको यह रचना अच्छी लगी तो आगे भी कोशिश करता रहूँगा /

वीणा जी और दीनेश जी का विशेष ध्यान चाहूँगा इस पोस्ट पर
मित्रों , परिवार के बहुत सारे सदस्यों ने मेरे नाती के जन्म पर बधाई देकर मेरी खुशी को और बढाया था 
आज बेटी और नाती घर आ रहे हैं / इस अवसर पर आप सभी के लिए यह छोटा सा गीत प्रस्तुत है 

मेरे नाती के आगमन पर एक स्वागत संगीत 

सूने से इस मन की बगिया में बाद मुद्दत आई बहार 
ले आया एक नन्हा फ़रिश्ता साथ में अपने फूल हज़ार ---

तरस रहा था कोई गुड्डा आ कर गोद में मेरे भी खेले 
उस नटखट की शैतानी को बड़े प्यार से यह दिल झेले
बड़ी थी बेचैन यह ज़िन्दगी, बन कर वह आया करार -----

पाया है इस मन ने क्या क्या कैसे बताऊं मैं यह तुमको
इतनी खुशियाँ पायी मैंने भुलाया है दिल से हर ग़म को
माँगी थी बस एक बूँद मैंने पर मिला है अब तो पारावार -----

अब न आरमान कोई बाकी , आरज़ू कोई न जिगर में है
जब से पाया इतनी प्यारी मूरत मैंने अपनी नज़र में है
झोली भर दी मेरे प्रभु ने , खोल के दया का अपना भण्डार -----
एक लघुकथा 

किसी शहर में एक भला आदमी हुआ करता था / अमीर भी था / बड़ा सा बंगला , बड़ी बड़ी गाड़ियाँ, आलीशान बगीचा जिसमें तरह तरह के फूल और फल के पेड़ थे / घर का काम देखने के लिए नौकर, रसोईया, ड्राइवर, माली सब थे / सभी से बड़ा ही आत्मीयता पूर्ण वर्ताव और सभी पर बहुत विश्वास था उनका / नौकर भी बड़े वफादार थे , ऐसा उन्हें लगता था /

एक बार गर्मी की छुट्टियों में वह सपरिवार किसी हिल स्टेशन पर गए हुए थे / ड्राइवर ने देखा कि माली पेड़ों से आम तोड़ कर चुप चाप एक टोकरी में भर रहा है / उसने रसोईये को बताया और दोनों ने माली को जा दबोचा / उसे काफी खरी खोटी सुनायी और कहा, साहब नहीं हैं घर में और तू उनके साथ गद्दारी कर रहा है, शर्म नहीं आती तुझे ? आने दे साहब को उन्हें बता देंगे / माली कुछ पल उन्हें निहारता रहा और फिर कहा, मैं गद्दार हूँ न ? साहब को बता दोगे तुमलोग ? और ड्राइवर भैय्या तू जो गाडी से पेट्रोल चुराता है वह क्या मुझे पता नहीं ? और बावर्ची भैय्या तू जो रोज़ शाम को घर जाते हुए अपने झोले में भरकर अपने घर के लिए राशन ले जाता है , क्या वह मैंने नहीं देखा ? तुम करो तो कुछ नहीं और मैं करूँ तो गद्दारी ? अब ड्राइवर और रसोईया के हाथ पैर फूल गए / फिर तीनों ने समझौता किया और आगे भी वैसा ही करते रहेंगे यही तय किया , मालिक को उल्लू बनाने के लिए /

मित्रों सोचिये इस गणतंत्र में क्या हम आम जनता मालिक नहीं और सब भ्रष्ट नेता इस माली, ड्राइवर और रसोईये की तरह नहीं ? आखिर कब तक यह सारे अपने बीच समझौते करते रहेंगे और हमें उल्लू बनाते रहेंगे ? / अब तो जागिये ..../ कब तक बेईमानों के हाथों पिटते रहोगे ? अपने को इतना भी शरीफ न बनाओ कि यह लोग तुम्हे डरपोक समझें
मित्रों , सरकारी स्तर पर तो देश के बारे में बहुत बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं / देश का नाम भारत किसी को कहता नहीं सुना आज तक , हर कोई इंडिया ही कहता है / ६५ साल पूरे हो जायेंगे देश को कथित रूपसे स्वतंत्र हुए, मन्नू मामा जायेगा झंडा फहराने, बड़े बड़े उपदेश ऐसे देगा जिसका पालन उसने खुद कभी न किया जीवन में / पर वास्तविकता क्या है , सोचिये ज़रा / और इसी सोच को मैंने उतारने का प्रयास किया है एक गीत के माध्यम से , जो मूल गीत फिल्म "नास्तिक" का "गगन झनझना रहा " पर आधारित है / मेरा काम है कहते जाना , अगर सुनें तो बहुत अच्छा , न सुनें तो मेरा भाग्य खोटा--- खैर पढ़िए

भारत को मेरे क्या हुआ - कण कण है जिसका जल रहा
क़दम क़दम पे बैठा है शैतान
ओ देशवासी ओ सावधान ,-------------------

ओ भाइयों, ओ बहनों, ओ माता पिता सुनलो रे पुकार
देश को डुबाने लगा, जो था खेवनहार
अब जागने का है दरकार (२)
हिम्मत न हार, सुन आत्मा की पुकार
तभी तो होगा रे बन्दे कोई चमत्कार ,-------------------

पग पग पे है अन्याय , झूठों का तो राज है यहाँ
इन्साफ का नाम नहीं , न ही है ईमान
क्या यह है हमारी पहचान (२)
बदलेगा देश, जो तू बदले
अपनी शक्ति अब पहचान ले ,---------------------

मैं कमज़ोर मैं निर्बल, कर सकता हूँ क्या भला
पुलिस की लाठी है साथ उनके
और धन भी जो है काला
धन का है क्या, मन ही सबकुछ है
ठान ले जो एक बार उसीकी जीत है ,----------------

अब जाना, अब समझा, जो कुछ भी आपने कहा
जो हो कमज़ोर रहे दुखी वह सदा
देंगे अन्यायी को तो सज़ा
तेरा मतदान है शक्ति महान
न करना ग़लत व्यक्ति को मतदान,--------

हम अपने लक्ष्य में सफल, हम देंगे देश को बदल
क्या कर लेगा कोई रे शैतान
हम अडिग चट्टान
मित्रों बड़ी खुशी हुई मुझे कल, जब आदरणीय मुद्गल जी ने फ़ोन कर के एक फरमाइश की गीत लिखने की. / महेंद्र कपूर का गाया हुआ कन्हैय्या , कन्हैय्या तुझे आना पडेगा / मुखड़ा ज्यों का त्यों रखते हुए मैंने इस गीत को नए सिरे से लिखा है , देश की अब की हालत को ध्यान में रखते हुए / देखिये शायद आपको भी अच्छा लगे /

आदरणीय सतीश मुद्गल जी को समर्पित है यह रचना 

कन्हैय्या - कन्हैय्या तुझे आना पड़ेगा 
वचन गीता वाला निभाना पड़ेगा -----------
तुने तो कहा था कि तू आएगा वहां
ग्लानी होगी धरम की भारत में जहाँ
हो क्या रहा है यह तेरी धरती पर
तुझको को भी क्या बतलाना पड़ेगा , वचन -------
साधू रो रहे हैं अन्यायी को मस्ती
झूठ महंगा है और सच्चाई सस्ती
जहाँ भी गया देखा तेरा ही "मामा"
इतना बता दे "भांजा" कब आएगा , वचन -----
खली पेट सोये जो मेहनत करे
मौज उड़ाते हैं यहाँ जेब कतरे
पल पल रोते देखा "द्रौपदी" को
लाज तुझे उसकी तो रखना पड़ेगा , वचन----
अस्त्र न उठाया तूने महाभारत में
विजय हुआ रहा जो सत पथ में
भक्तों का विश्वास हिलने लगा
आजा रे सारथी तुझे बनना पड़ेगा , वचन ---
ठहाके लगते हैं सारे अधर्मी
आंसूं बहते हैं यहाँ सत्कर्मी
कहीं हो न जाए रे तू बदनाम
सुदर्शन ही अब तो चलाना पड़ेगा , वचन -----
एक और अनुरोध आया था बहन नैनी ग्रोवर से , कि फिल्म "मिलन" के गीत, "सावन का महीना पवन करे शोर " पर एक गीत उनके लिए लिखूँ. / तो लीजिये पढ़िए इस गीत को

- मेरे देश सा शासन किसी और देश में न हो 
हमरी जैसी हालत हे प्रभु और किसीकी न हो -----

- क्यों करता है शिकवा, चुपचाप बैठ कर रो 
तुमने वोट दिया था , अब तुम ही तो भुगतो ---

- मालूम कहाँ था कि यह देंगें रे धोखा 
- पछताने से क्या होगा निकल गया मौका
सांप तो निकल गया है,अब लकीर क्यों पीटो
तुमने वोट दिया था , अब तुम ही तो भुगतो ---

- क्या क्या किये थे वादे , अब याद आये
- चुग गयी चिड़िया जब क्यों पछताए
सोच समझ के चले जो, दशा न ऐसी हो
तुमने वोट दिया था , अब तुम ही तो भुगतो ---

- तुम ही बता दो भाई अब राह क्या है
- जैसे को तैसा करें बुराई ही क्या है
लात के भूत जो हों रे, बातें उनसे क्यों हो
तुमने वोट दिया था , अब तुम इनसे निपटो ---
मित्रों , हमेशा मन्नु मामा और उन्ही जैसे निकम्मों पर पैरोडी लिखते हुए १ साल हो गया , लेकिन कोई असर नहीं उन बेशर्मों पर / सच "भैंस के आगे बीन बजाना " इसीको ही तो कहा जाता है / पर एक ऊपर बैठे हैं भगवान्, उन्हें कैसे यह सब अन्याय , अत्याचार,अधर्म मंज़ूर हो रहा है / तो आज की पैरोडी सीधे भगवान के लिए ही / मूल गीत कौन सा है बताने की ज़रुरत नहीं बहुत ही लोकप्रिय गीत है आज भी फिल्म "तीसरी कसम" का / तो पढ़िए और आनंद लीजिये

दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई
काहेको दुनिया बनाई तूने काहे को दुनिया बनाई ,-------

काहे बनाये तूने एम पी , एम एल. ऐ
कानून इतने सारे , इतने झमेले
काहे बनाये तूने डेमोक्रेसी सिस्टम (२)
घुटने लगा है प्रभु, जिसमें अपना दम
सिस्टम बनादी ऐसे हो रही है जग हंसाई
काहेको दुनिया बनाई तूने काहे को दुनिया बनाई ,-------

कहने को राजा यहाँ है तो जनता
हर कोई रो रो के सर को है धुनता
गिनती के लोग यहाँ मौज उड़ाते (२)
उनकी करनी की सजा हम हैं भुगतते
कब तक सहेंगे सज़ा, कब होगी बोलो रिहाई
काहेको दुनिया बनाई तूने काहे को दुनिया बनाई ,-------

तुमने कहा था ग्लानि धर्म की होगी जब
भारत भूमि में प्रभु आओगे तुम तब
आँखें सभी की देखो पथरा गयी है (२)
आपकी राहें अब भी सूनी पडी है
इन पापियों की प्रभु कब होगी यहाँ से बिदाई
काहेको दुनिया बनाई तूने काहे को दुनिया बनाई ,-------
एक फिल्म आयी थी लव इन टोकियो - उस में एक गीत था -ओ मेरे शाहेखुबा - आइये उसे आज नए ढंग से लिकते हैं आप सभी के लिए 

ओ मेरी गोरी मैडम, तेरी कdमों की है क़सम
तूम ही तो सबसे बेहतर हो 
हम बने तेरे नौकर हो -----
ऐसी आदत पडी है हमको तो सदियों से यहाँ
देखी जो गोरी चमड़ी हिलने लगी दुम वहां
तेरी इस गोरी सी सूरत का सौगंध लेते हम ओ मैडम
तू जहाँ जायेगी हम पीछे पीछे होंगे वहां , ओ मेरी -----
न होवे खाना हजम जब तक जूठन न मिले
तेरे कुत्तों के भी सामने हम हाथ मले
एक नज़र दाल दे तू हम से इन गरीबों पे
गाता जाए दिल यह उछल उछल बल्ले बल्ले , ओ मेरी -------
कोई कुछ भी कहे न छोड़ेंगे हम तेरे क़दम
तेरी पैरों की जूती बने रहना अपना धरम
चाहे अपमान, गाली या फिर कुछ और मिले
तेरे चमचे हम बनके रहें जनम जनम , ओ मेरी ---

कहने की ज़रुरत नहीं , यह स्तुति मेरे मन्नू मामा के लिए लिखी गयी है
देश में जो हालत है स्पष्ट है कि हर चिंतनशील व्यक्ति के लिए यह एक मानसिक तनाव का कारण बन गया है./ हम कुछ कर तो नहीं सकते , पर एक आध पैरोडी डाल कर आपके तनाव को कुछ कम तो करने का प्रयास कर सकते हैं / आज के पैरोडी का मूल गीत है फिल्म "रजा और रंक " का गीत "मेरा नाम है चमेली" / पढ़िए 

मैं हूँ ज़हरीली नागिन - चाहे लाख बजा लो बीन 
कोई होगा न असर इसका मुझ पे 
मुझे जानो न तुम कम , बोलो किसमें है इतना दम
जो टक्कर लेगा आ कर यहाँ मुझ से -----------------
सारे देश से चुन चुन के लाई हूँ ऐसे चमचे
रात दिन जो गाते रहेंगे गीत मेरे गुण के
अरे --- जादू टोना मैंने ऐसा किया ---
जनता को भरमाया ऐसे ताला लगा होठों पे , मैं हूँ------
मिडिया जिसको कहते हो रे , उसके मैंने खरीदा
मेरी काली करतूतों पर सब डालते हैं यह परदा
अरे --- ऐसे लोग जो साथ रहें ---
पांचो ऊंगले घी में होगी, रहेंगे मालिक बन के , मैं हूँ----
जनता जो इस देश की है रे , वह है भोली कितनी
आपस में यह लड़ मरते हैं, चाल चलें हम अपनी
अरे -- कैसी अकाल पायी हमने ---
विदेशी यह परिवार हमारा, भारी है यहाँ जनता पे , मैं हूँ ---

Saturday, June 9, 2012


Grameen vikas aur bachat ke mahatwa par banee ek film kee dubbing ke samay- main, humare group ke do aur sadasya Sujit Bhai aur Avtaar bhai Dubbing studio men..
मित्रों , आप सभी जानते ही हैं , सारा देश गर्मी से परेशान है / सुना है ग्रीष्म प्रवाह में कई मौत भी हो चुकी है / पर सरकार को क्या फर्क पड़ता है , कोई मरे या जिंदा रहे / उसी बात पर सोच रहा था , कि आखिर मन्नू मामा को इस देश से और यहाँ के लोगों से लगाव क्यों नहीं है / अचानक दिमाग की बत्ती जलने लगी, अरे भाई मामा तो पैदा पकिस्तान में हुआ था न, तो भारत तो उसकी जन्मभूमि नहीं है , तो उसे क्यों लगाव हो इस देश से / इसी तरह की बात को ले कर यह पैरोडी लिखी, मूल गीत है - जलते है जिसके लिए तेरे आँखों के दीये , तो पढ़िए

जलते हैं मामा प्यारे - देश के लोग सारे
चैन से बैठा है क्यों, मेडम के पैर पखारे //
चलो माना कि लोगोंने तो तुझे वोट न दिया
मेरे इस देश की मिटटीपे भी तू पैदा न हुआ
इसी लिए तो शायद देश का सोचा न रे , जलते ----
कैसे यह लोग कहे जाते तू है बड़ा ईमानदार
यह बता असम में कैसे हो गया तेरा घर द्वार
झूठी बातें कहते हुए शर्म तुझे आयी न रे , जलते --
तू घडा चिकना है तुझपे असर होगा नहीं
जानता हूँ मैं कि जीवनमें तू सुधरेगा नहीं
ऊपर जायेगा जब तू, क्या होगा सोचा क्या रे , जलते ---
हाँ तो मित्रों, अपने एस.सी.मुद्गल जी थोडा रूठे हुए थे हमसे./ पर उन्हें मनाना भी हमें खूब आता है , मन्नू मामा पर एक पैरोडी लिख दो तो वह खुश/ तो आज बहुत दिनों के बाद एक पेरोडी डाल रहा हूँ ,उन सभी के लिए जिन्हें पैरोडी पसंद है./मूल गीत के मुखड़े को ज्यों का त्यों रखा है मैंने, इसलिए जानने में कोई परेशानी नहीं होगी आपको / तो मज़ा लीजिये मामा भांजे की कहानी का 

ओ दुनिया के रखवाले 
सुन दर्द भरे मेरे नाले , सुन दर्द भरे मेरे नाले ,----
धर्मन्याय की राह पे चलकर इज्ज़त मैंने कमाई
मामा की काली छाया से, देखो सब है गँवाई
हो गयी मेरी जग हँसाई
ओ ओ -- इज्ज़त की मेरी उठ गयी अर्थी अब तो नीर बहा ले
ओ दुनिया के रखवाले----
चूहे को खोजे ज्यों बिल्ली, मेढक सांप है खोजे
मामा से बचने को अब तो राह खोज रे भांजे
संकट से चाहे जुझे
ओ ओ - कर दया मुझ पे ओ मेरे दाता मैं हूँ तेरे हवाले
ओ दुनिया के रखवाले ---
आग बनी सावन की बरखा फूल बने अंगारे
नागन बन गयी रात सुहानी पत्थर बन गए तारे
मेरे देश को कोई बचा रे
ओ ओ -किस्मत फूटी , आस भी टूटी, मालिक इनको उठा ले
ओ दुनिया के रखवाले --
लोग दुखी हैं मामा सुखी, अक्ल पे पड़ गया पत्थर
देशभक्त सब रो रो मरे हैं, पापी के मुंह घी शक्कर
प्रभु कैसा है यह चक्कर
ओ ओ - आना होगा अब तो भगवन, तुझ बिन कौन संभाले
ओ दुनिया के रखवाले --

नोट- मित्र यह मयत्र मनोरंजन के लिए नहीं लिखा मैंने, यह मेरे मन की सच्ची भावनाएं हैं. इसका ध्यान रखें..
परिवार में दिखते हुए बिखराव पर , एक छोटी सी कविता , मेरी तरफ से;

वह भी एक ज़माना था 
जब बेटा स्कूल से लौट कर 
खुशी खुशी, मेरे हाथों पर 
अपने इम्तिहान का रिपोर्ट कार्ड
रख दिया करता था //
पर आज ज़माने में
ढेरों तब्दीली आ गयी है
दफ्तर से लौट कर वह
अपने कमरे में जा
तनख्वाह का पेकेट
अपनी पत्नी को थमता है //
परवरिश में उसकी
शायद मुझसे कहीं चूक
हो गयी थी //
एक ज़माना ऐसा था जब सारे जवान दिल शम्मी जी के गानों के दीवाने हुआ करते थे/ उनका एक बहुत ही लोकप्रिय गीत था" यह चाँद सा रोशन चेहरा - जुल्फों का रंग सुनहरा" / उसकी पैरोडी पर भे ज़रा नज़र डाल लीजिये 

यह बुझा बुझा सा चेहरा - है मौत का जिसपे पहरा 
इन आँखों में मक्कारी - साज़िश है जिस में गहरा 
मैं लानत भेजूं उसी पे - तुझे पी एम् जिसने बनाया ------
एक जीव होती है लोमड़ी - लोगों से सुना करते थे
तुझे देख के मैंने जाना वह ठीक कहा करते थे (२)
जिसने तुझको पहचाना, वह जानता तू है शातिर
जो कहते तुझको साधू, उनकी खोपड़ी गयी फिर
मैं लानत भेजूं उसी पे - तुझे पी एम् जिसने बनाया ------
जिस देशका तुझ सा नेता, दुश्मनकी ज़रुरत क्या है
कुर्सी ही है तुझको प्यारी, लोगों से मोहब्बत न है (२)
बस नाम की सर पे पगड़ी -जिसको न सम्भाला तुने
इज्ज़त को रखकर गिरवी, कुर्सी यह पायी तूने
मैं लानत भेजूं उसी पे - तुझे पी एम् जिसने बनाया ------
कुछ सीख ले ले भांजे से - कर ले शर्म अब कुछ तो
जाएगा तू जग से जब भी, कुछ सोच ज़रा उसकी तो (२)
किस काम की तेरी पढाई, जो काम न अब तक आयी
लोगों के गले पर बुगदा, तू फेरा बनके कसाई
मैं लानत भेजूं उसी पे - तुझे पी एम् जिसने बनाया ------
मित्रों, सच कहूं तो आज मैं बहुत दुखी हूँ / मेरी ग़लती की सज़ा कोई और भोग रहा है / दोपहर से देख रहा हूँ हर कोई लाल पीला हो रहा है , मोंटेक सिंह पर क्यों कि उसने शौचालय पर ३५ लाख खर्च करवा दिए/ क़सम से, कसूर उसका नहीं , सारा क़सूर तो मेरा है / कुछ दिन पहले उसने मुझे फ़ोन पर कहा अरे भाई क्या सिर्फ अपने मामा पर ही पैरोडी लिखते रहोगे? हम भी सरदार हैं ,नीली पगड़ी भी बांधते हैं और कमीनेपन और स्वार्थी चाल में तुम्हारे मामा से कोई कम नहीं हैं / ठीक है, हम भी कुछ ऐसा करते हैं कि तुम मजबूर हो जाओगे हम पर पैरोडी लिखने को / तो बताइए कसूर मेरा है या उसका / मैंने अगर पहले से उस पर पैरोडी लिख दी होती तो शायद ३५ लाख बर्बाद होने से बच जाते / वैसे जब इनके खाने पीने का बोझ हम पर है तो इनके शौच की सुविधा का जिम्मा भी तो हम ही लेंगे न ? खैर मज़ा लें..

मूल गीत - फिल्म तीसरी क़सम

दुनिया बनानेवाले , क्या तेरे मन में समाई
काहेको मोंटेक बनाई , तूने काहे को मोंटेक बनाई ----
काहे बनाये तूने योजना आयोग
वहां बिठाए कैसे कैसे यह दानव
कोई न योजना कैसा यह आयोग
सभीने लगाया मेरे देशको देखो रोग
रोग लगा दी पर- कभी न दी है दवाई , काहे को मोंटेक--
खाने को ३२ और शौच के ३५ लाख
हम तो हुए ख़ाक, बन गयी इनकी साख
बन्दर के हाथों में उस्तरा थमाया
गर्दन कटे न कहीं भय है समाया
भयभीत जनता जहाँ कैसे होगी भलाई , काहे को मोंटेक--
एक है मोंटेक यहाँ - एक मनमोहन
मन से नहीं नाता, इनको लुभाए धन
क्रिया करम किया दोनों ने देश का
अफ़साना क्या सुनाएँ हम इनके ऐश का
भोंपू इमानदारी की इन अय्याशों ने बजाईए, काहे को मोंटेक---

नोट - अगर आप को यह पसंद आया तो दूसरा भी डालता हूँ कुछ हे देर में
दूसरी पेरोडी मोंटेक पर , मन है नहीं पर टिका हुआ है यह / मूल गीत है फिल्म अनमोल घड़ी का - क्या मिल गया भगवान्

क्या मिल गया भगवान् तुम्हे 'मोंटेक' बना के 
शीशम की यह लकड़ी पे तुम्हे दीमक लगा के ,---
हम सोच रहे थे कभी खुशहाल हम होंगे 
आजादी जो आयेगी तो हंस हंस के जीयेंगे
क्या क्या थी खबर तुम को न आयेगी दया भी
गद्दी दिया तुमने गधों को , देश डूबा के
शीशम की यह लकड़ी पे तुम्हे दीमक लगा के ,---
मोंटेक ही दुश्मन नहीं दुश्मन है मामा भी
जो सच के साथ हैं उन्हें न चैन कहीं भी
यह कैसी है सरकार तुम्हे देश में बोलो
कीचड लगाए माथे पे जो चन्दन कह के
शीशम की यह लकड़ी पे तुम्हे दीमक लगा के ,---
३२ का खर्चा जो करे कहलाये वह अमीर
टायलेट है लाखों की लेकिन कैसे यह फ़कीर
जो छीन के रोटी हमारी खाते ही रहते
टायलेट का खर्चा रहेगा वसूल वह करके
शीशम की यह लकड़ी पे तुम्हे दीमक लगा के ,---
तो भाइयों चलो एक और पैरोडी हो जाए / मन्नू मामा भी खुश उसका कोई जोडीदार मिल गया कहके / मूल गीत है शोले का - यह दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे 

यह शैतानी हम नहीं छोड़ेंगे 
सारा खून जनता का पी के ही छोड़ेंगे ----
तेरा मुंह - मेरा मुंह, तेरा पेट - मेरा पेट 
ऐसा है रिश्ता
लोग रोते हैं सारे , माल सब महंगा
अपनको तो सस्ता
डटके हम खायेंगे - शान से टायलेट जायेंगे
अपना यह रास्ता , यह शैतानी--------------
लोगों को आते हैं दो नज़र हम मगर
देखो दो नहीं
नीली पगड़ी बांधे हैं, कामिक्स* के हम पंडित है
हम सा कोई नहीं
३२ के लोग खाते हैं- ३५ के हम जाते हैं
ख़ास फर्क कोई नहीं , यह शैतानी-----------
अपनी तो चांदी है , जनता अपनी बांदी है
मुंह न खोलेगी
ऐसा ही चलता रहे, मलाई खाते रहें
मस्त यह ज़िन्दगी
पूण्य क्या - पाप क्या, माँ क्या- बाप क्या
मेडम की बंदगी , यह शैतानी --

* कामिक्स - कल हमारे छोटे भाई अरबिंद पाण्डेय जे एने एक बढ़िया बात कही- की मामा और मोंटी इकानोमिक्स नहीं हारर कामिक्स के पंडित है / वह बात बड़ी पसंद आयी मुझे इसलिए इस शब्द का प्रयोग किया..
अब तो भैया, पैरोडी के अलावा और कुछ लिखने का मन ही नहीं होता है / एक तो मन तोडा सा हल्का हो जाता है और ४ लोगों को खुशी मिलती है, ज्यादा न सही / इसी बहाने थोडा सा पुण्य कमा लेते हैं/ तो आज का मूल गीत है फिल्म "उड़न खटोला" से "मोहब्बत की राहों में चलना संभल के " देश की हालत पर है यह व्यंग

सच्चाई की राहों में चलना संभल के 
यहाँ जो भी आया, बना वह तो जेल के ,----
न पायी किसीने न्याय की मंजिल 
जाने टूटी कितनी जोड़ी चप्पल के ,------
हमें देती दावत मक्कारों की दुनिया
हंसी वह उडाये मेरे इन उसूल के ,-----
तोड़ दे न तुझको तेरी यह सरकार
पुलिस साथ उसके रहना संभल के -----
सारे कसाई आज राजा बने हैं
जेबें भरें अपनी शरीफों को छल के ,----
जो है चोर पाजी, बना है ईमानदार
धरम खो गयी है, लंगडी चाल चल के ,-----
दिन यह फिरेंगे एकदिन होंगी बहारें
बंधाती है हिम्मत, इशारे यह दिल के ,---
बहरे बने हो क्या हे भगवन बताओ
करो कारनामा अब तो तुम ही कमाल के ------
यह तो पक्की बात है कि आप सभी ने फिल्म गाइड का गीत "गाता रहे मेरा दिल" सुना ही होगा / अब उस गीत को अपना मन्नू मामा कैसे गाता है सुन लीजिये 

गाता रहे मेरा दिल - मैं अपराधी मैं हूँ वकील हाय
जब तक मैडम हैं हाकिम, अपना धड़केगा ही दिल , गाता रहे ---
ओह मेरे मोंटी यार , पैखाना साफ़ ही रखना
लोगों का सोचे क्यों, उनको तो भूखों मरना
ओछापन हमें सीखला देगा ग़लत काम सब करना
जब तक मैडम हैं हाकिम, अपना धड़केगा ही दिल , गाता रहे ---
काहे की अब चिंता , मिडिया जो साथ रही है
टुकड़े खा कर देखो , नग़में सुना रही है
६० बरस से यही तो सिस्टम काम आ रही है
जब तक मैडम हैं हाकिम, अपना धड़केगा ही दिल , गाता रहे ---
जानती है सब पब्लिक, किसी फिल्म का है गाना
जान अगर यह जाती, बिस्तर गोल हो अपना
जो न पूरे करने हो, दिखलायें इनको सपना
जब तक मैडम हैं हाकिम, अपना धड़केगा ही दिल , गाता रहे ---
अनगिनत है जनता, गिनती अपनी उंगली पर
दिए जाते हैं फिर भी हम चक्कर पे चक्कर
ऐसे नीच हैं हम जो न ले कोई भी हमसे टक्कर
जब तक मैडम हैं हाकिम, अपना धड़केगा ही दिल , गाता रहे ---
यह उस कुँवारे पर है , जो शायद आजीवन कुंवर रहने के लिए ही पैदा हुआ है / पढ़िए और रविवार का आनंद लीजिये 

कुँवारा हूँ--- कुंवारा हूँ
सब लानत भेजे, पर
कहता सबका दुलारा हूँ........
राज-पाट नहीं, कोई धाक नहीं
मुझको युवराज यह कहते हैं
सारे देश में खिल्ली उड़े
तारीफें चमचे करते हैं
शोले कहते पर हल्का सा
नहीं शरारा हूँ...............
रोटी दलितों का छीनता हूँ
उनके घर पर मैं सोता हूँ
करता हूँ दिखावा, कभी कभी
मैं उनके नाम पे रोता हूँ
जनता - नहीं देती वोट
ऐसा तकदीर का मारा हूँ........

अपनी टिप्पणी

जो पाप किये तेरे पूर्वज
तू फल उसीका भोगता है
जो पेड़ बबूल का बोता है
कभी आम कहाँ वह खाता है
करले प्रायश्चित रे मूरख
कहता मैं दोबारा हूँ.....
मांगने आयी थी आग, बन बैठी मालकिन, यह तो आपने सुना ही होगा. यह पैरोडी उसी पर है

घर आयी मेरे परदेसन 
क्या पता निकलेगी वह डायन-----
जादू ऐसा किया उसने
सारे शेर बने मेमने
सब को ओढाने लगी वह कफ़न,
क्या पता निकलेगी वह डायन-----
लोग भी कैसे अहमक है
अंगारा पल्लू में रखते है
उसपे लुटाते देश का धन
क्या पता निकलेगी वह डायन ---
जाने मर्ज़ है क्या उसको
बार बार जाए विदेश को
जाने मरेगी कब पापन
क्या पता निकलेगी वह डायन------
हद तो हो गयी अब यारों
बन बैठे है "चुड़ैल" - "पारो"
सहता कैसे तुम्हारा मन
क्या पता निकलेगे वह डायन------
पैरोडी हो और मामा न हो, यह तो मामा की बेईज्ज़ती होगी न, तो आखरी न. मामा का है / पढ़िए



ऐ जनता जूते बरसाओ, मामा मनहूस आया है 

इसे मरघट पे पहुँचाओ, जी कर इसे करना ही क्या है,मामा मनहूस आया - ------

न दे जो साथ सच्चे का, तो फिर वह आदमी क्या है 

फैलाए ऐसी बर्बादी, उसके आगे सुनामी क्या है 

अगर मुखिया ऐसे हो देश में, तो गद्दार फिर क्या है , मामा मनहूस आया -------

मज़े लुटे हैं सब पापी, साधु अब जेल में सड़ते 

विदेशों में जमा है धन, जो सच्चे हैं वह अब कड़के 

हुकूमत जो इसे कहते , डकैती बोलो फिर क्या है , मामा मनहूस आया --------

उसूलों के हों जो पक्के, कभी तो वह नहीं झुकते 

ज़रा सी हो जो खुद्दारी,वह समझौते नहीं करते 

इसे जो आदमी मानो, नपुंसक बोलो फिर क्या है , मामा मनहूस आया ----

घोटाले पर घोटाले ही तो देखी इस हुकूमत में

अभी से हाल ऐसा हो, होगा फिर क्या क़यामत में 

बचेंगे कैसे पापी से बताओ रास्ता क्या है, मामा मनहूस आया है

Wednesday, March 14, 2012

क्या हम वास्तव में जागरूक हैं (लघु कथा)
घर में तीनों भाइयों में सबसे बड़ा था वह. / अच्छा खासा पढ़ा लिखा था , विश्व विद्यालय की सबसे ऊंचे डिग्री हासिल की थी / पर तकदीर खोटी थी / आज भी वह बेकार था / सरकारी नौकरी उसे मिल नहीं रही थी क्यों कि न तो वह आरक्षित वर्ग से था, न ही उसके पास सिफारिश थी / नौकरी पाने के लिए मोटी रक़म घूस देने की भे यूस्की औकात नहीं थी / छोटामोटा कोई धंधा शुरू करने के लिए बैंकों की भी खाक छानी , पर वहाँ भी काम नहीं बना / मतलब आम बोलचाल में बेकार निठल्ला, किसी भी काम का नहीं था वह.
थक हार कर घर लौटा शाम को/ माँ से कहा , माँ बड़ी भूख लगी है कुछ है क्या खाने के लिए ? / बापने कहा, हाँ हाँ क्यों नहीं साहब आये हैं दिन भर मेहनत करके , पैसा कामके लाये हैं जो , खिलाओ भाई अपने लाडले को / माँ ने टोकते हुए कहा, बस भी करो, दो रोटी तो खाने दो बेचारे को / बापने भड़क कर कहा , हाँ हाँ खिलाती रहो , जीवन भर मूंग दलने के लिए जो पैदा हुआ है हमारी छाती पर / अरे इससे तो बेहतर हमारे बाकी के दोनों लड़के हैं / एक ने पढ़ाई आधे में छोड़ कर बैंक से लोन लिया जैसे तैसे / वापस किया नहीं , क़र्ज़ माफी और फिर से लोन / यह टी वी , फ्रिज, ऐ सी सब उसी पैसे का ही तो है / और सबसे छोटा, तुम उससे कोसती थी न कि आतंकवादी बन गया / अब देखो आत्मसमर्पण करके ढेरों माल कमाया जिससे घर की मरम्मत तो हो गयी और उसकी शादी भी / पढ़ लिखकर क्या निहाल कर दिया इसने हमें /
मित्रों यही है वास्तविकता आज इस देश की ? सोचिये हम कहाँ जा रहे हैं ?