किसी सत्संग में मैंने एक कथा सुनी थी, बहुत साल पहले / आज वह मुझे याद आ गया फिर से/ सोचा कि आप सभी से उसे सांझा कर लूं /
हुआ यूँ कि एक व्यक्ति था अत्यंत सम्पन्न/ घर में सभी सुख सुविधाएं उपलब्ध थी/ कमाई अच्छी थी / घर में काम करने के लिए नौकर चाकर थे / वह घर के सामने बरामदे में दिन भर बैठा रहता और सामने एक सुन्दर बगिया, जिसमें तरह तरह के फूल खिले रहते थे वर्ष भर, ऋतुओं के अनुसार , उसे देख कर आनंदित होता / घर के सामने कोई जान पहचान का व्यक्ति गुज़रे, तो उसे बुला कर , अपनी बगिया और सुन्दर सुन्दर फूलों के सौन्दर्य का बखान कर, आत्म प्रशंसा में मगन रहना ही उसका एक मात्र काम था/ वैसे बगिया का काम करने के लिए एक माली था , पर घर और बगिया का मालिक होने के कारण वह सारा श्रेय अपने आपको देना पसंद करता था /
एक दिन अचानक उसने देखा कि बगीचे में एक गाय घुस आयी है और पौधों को खाने के साथ साथ उन्हें रौंद भी रही है / संजोग से माली उस समय कहीं गया हुआ था / इसने आव देखा न ताव और गुस्से से भर कर एक मोटी सी लाठी उठा कर गाय को दे मारा / गाय बेचारी वहीं लुढ़क गयी / धन के मद में उन्मत्त हो कर उसने कोई पश्चाताप तो किया नहीं , गाय के मालिक को कुछ रुपये दे कर सोचा कि उसका दायित्व संपन्न हो गया /
मरने के बाद जब वह यमलोक पहुंचा तो चित्रगुप्त ने उसे गो ह्त्या का अपराधी कह कर उसके लिए दंड विधान करने की संस्तुति की / इसने आपत्ति करते हुए कहा, महाराज गाय को मैंने थोड़ी न मारा , वह तो मेरे हाथों का दोष है / यमराज ने तब उसे पूछा पौधों के लगाने में तुम्हारा कोई श्रम न होते हुए भी तुम उसका सारा श्रेय अपने को देते थे और गोहत्या के लिए दोषी तुम्हारा हाथ ?
तो मित्रों यह कथा मैंने इस लिए कही कि देश में अगर कोई अच्छा काम हो तो सरकार उसका सारा श्रेय अपने आपको देती है परन्तु हर बुराई का जिम्मेदार , विरोधी दल या जनता को बताती है , यह कैसा न्याय है / क्या सरकार की मनोवृत्ति इस व्यक्ति जैसा ही नहीं है ?