Friday, September 20, 2013

सारे तो नही लेकिन कुछ मित्र ऐसे हैं ज़रूर जो मेरी लिखी पेरोडी पसंद करते हैं- और जिन्हे पसंद है उनके लिए आज पेश है एक पेरोडी जो देश की राजनीतिक दुरवस्था में आम जनता के दोष पर एक प्रहार है - मूल गीत एक ज़बरदस्त हिट गीत फिल्म " उजाला " का "झूमता मौसम मस्त महीना" हसरत जी का लिखा हुआ - 

वोट का मौसम मुश्किल जीना 
सर्दी में भी छूटे पसीना 
नेता हमरा चैन है छीना 
हाय रे राजनीति जान ले गयी ---

वादे पे उसके करके भरोसा
अपनी गर्दन खुद ही तू फांसा
कौन तुझे अब देगा दिलाशा
हाय रे आँख क्यों भर आई ------

लंबी सड़क- यह झंडे पोस्टर
चुन्धिया गयी है मेरी नज़र
इन सब की तू बात न कर
डोला ईमान तेरा बोतल पर

जैसे ही उसने नोट निकाले
अपना वोट किया उसके हवाले
अब चाहे तू जितना भी रो ले
हाय रे आँख क्यों भर आई ------

मैं भी बड़ा था नादान
उसकी नीयत से अंजान
जाना उसे साधु जो शैतान
क्यों नहीं पाया रे पहचान

देश की तूने कब सोचा क्या
अपने ऩफा के पीछे पड़ा था
अब के न चुके कोई भी मौका
रखना याद तू मेरे भाई ----------

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