Friday, September 20, 2013

कल रात टी वी के समाचारों में देखा कि उट-पटांग असार ( U P A ) सरकार ने हमारे ही पैसों में से 10000 करोड़ खर्च करके टॅबलेट और मोबाइल मुफ़्त में बाँटने का निर्णय किया है ताकि इस तरह घूस दे कर वोट खरीदा जा सके - आख़िर किसने यह अधिकार दे दिया सरकार को ? बिना भोजन के कोई मर रहा है , इलाज के बिना कोई दम तोड़ रहा है , पेट की आग बुझाने को माँ अपने जिगर के टुकड़े को बेच रही है जिस देश में - वहाँ यह सब एक मज़ाक़ और कमीना-पन नहीं तो और क्या है ?

सरकार देश को एक भीख-मँगों का देश बनाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम कर रही है ताकि हर कोई यह समझे कि उनकी जान का मालिक देश की सरकार ही है - इसी पर प्रस्तुत है एक और पेरोडी (मूल गीत सजन रे झूठ मत बोलो- फिल्म तीसरी क़सम)

बनाएँ तुमको भिखारी
यह देखा हमने सपना है
मोबाइल टॅबलेट बाँटेंगे
वोट जो हासिल करना है , बनाएँ तुमको भिखारी-------1

कोई भूखा मरे हमें क्या
बेटे को माँ बेचे हमें क्या
किसी भी कीमत पे हमको(2)
सत्ता हासिल ही करना है , बनाएँ तुमको भिखारी-------2

दिखाएँ ठेंगा क़ानून को
ठंडा करें तेरे जुनून को
साम दाम दंड भेद सारे (2)
तो हमको आज़माना है , बनाएँ तुमको भिखारी-------3

चाहे चीखो या चिल्लाओ
पोस्ट फेसबूक पे लगवाओ
नींद में सोई जो जनता (2)
हमेशा इसको सोना है , बनाएँ तुमको भिखारी-------4

तुम्हारे घर को लूटेंगे
कुछ टुकड़े तुम पे फेंकेंगे
भिखारी देश बन जाए (2)
हमें तो ऐश करना है , बनाएँ तुमको भिखारी------- 5

है अहमक देश की जनता
बताया है सदा इसे धत्ता
इन्ही के खून चूस चूस के (2)
वजन अपना बढ़ाना है , बनाएँ तुमको भिखारी------- 6

न जाने कितने आए - गये
सभी को तो हमने टपकाए
देश के कर दिए जो टुकड़े(2)
असंभव इसको जोड़ना है , बनाएँ तुमको भिखारी------- 7

हमारा जवाब

चाहे मगरूर हो कितना
एक दिन उसको मिटना है
हाय जो लेता औरों का
आ से उसको जलना है , चाहे मगरूर-----

कंस और रावण भी न रहे
तानाशाह मुँह की हैं खाए
न उछल तू इतना रे मूरख (2)
बदलने वाला ज़माना है - चाहे मगरूर हो कितना ------

ऊँट को नाज़ होता है
जो अपने कद को देखता है
जनता नहीं है एक दिन तो
पहाड़ के नीचे आना है , चाहे मगरूर हो कितना --------

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