Monday, July 14, 2014

एक लघु कथा - पर है एक बड़ी सीख इस में

आज बहुत खुश था वह- उसका बचपन का साथी आज इतने साल के बाद जो आया है शहर में - यह बात और है एक लंबे समय से दोनों के बीच कोई संपर्क नहीं था - पर उसे खुशी है कि उसका बचपन का यार आज महानगर में जा कर देश के एक सफल उद्योगपति का दर्जा हासिल कर चुका है और वह यहीं रह गया स्कूल का अध्यापक बन कर ..
शाम को निकल पड़ा दोस्त से मिलने - रास्ते में हलवाई की दुकान देखी - गरमा गरम समोसा देख रुक गया - याद आया दोस्त को समोसा ख़ास पसंद था दोस्त को- एक बड़ा सा पार्सल बनाया और फिर चल पड़ा
दोस्त के घर पहुँचा देखा बड़ी भीड़ है लोगों की - उसने अपना परिचय दिया फिर भी उसे रोक दिया गया - यह कह कर साहब ज़रूरी बात कर रहे हैं आप यहीं इंतेज़ार करें- करीब 2 घंटे बाद उसे बुलाया गया - अंदर गया तो दोस्त ने सवालिया निशान दाग दिया - कहिए कोई काम था
इसने अपना नाम बताया तो दोस्त ने एक नक़ली मुस्कान के साथ कहा अच्छा याद आया - कैसे आना हुआ
इसने समोसे का पार्सल बढ़ा दिया और कहा बचपन में तुमको समोसे बड़े पसंद थे न - खास तुम्हारे लिए ले कर आया हूँ
"तुम" कहे जाने पर दोस्त को कुछ बुरा लगा यह बात इसने स्पष्ट देख लिया
अनमना सा हो कर दोस्त ने पार्सल पकड़ा और फिर अपने नौकर को आवाज़ दी - नौकर अंदर आया तो पार्सल उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा - देखो यह हमारे शहर का मशहूर समोसा है - इसे तुम लोग मिल बाँट कर खा लो
इस के मन में दोस्ती का जोश जो था उस पर घड़ा भर पानी पड़ चुका था..
दोस्त ने कहा - और कोई ख़ास काम न हो तो मैं ज़रा अपने काम पर ध्यान दूँ अब .
इसने हाथ जोड़ दिए और रुँधे गले से कहा - माफ़ करना साहब- अकारण आपका समय खराब किया - बहुत बहुत धन्यवाद आपका जो अपने दर्शन करने की अनुमति दी .
बहते हुए आँसू को रोकने का असफल प्रयास करते हुए तूफान की तेज़ी से निकल गया कमरेसे ......

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