Monday, July 14, 2014


खरे सामान ले कर जो जा बैठे बाज़ार में
बगल के दुकानदारों ने देख कर हँसा मुझे //
समझा मैने कि स्वागत वो कर रहे हैं मेरे 
उनको देख मुसकराना पड़ा भी भई मुझे //
सभीने मुझे कहा अरे ओ अक्ल के दुश्मन
खिल्ली उड़ाने को हम ने हंसा था तुझ पर //
और तू समझा हम खुश हो रहे हैं तुझ पर 
क्या क्या लेकर आया जा होशकी दवा कर //
किस ज़माने में तू जी रहा इतना पता नहीं
खरा माल अबके किसी बाज़ार्ं में चलता नहीं //
धंधा गर करना है तो जा मिलावट सीख ले
खोटा माल को चमका कर बेचना तू सीख ले //
सुनकर बातें उन अहमको की मैं हैरान हो गया
हर पल ऩफा- नुकसान इंसान को क्या हो गया//
आया था मैं दर्द खरीदू और खुशियाँ बेच दूँ
दिल जो सब पत्थरके हो गये जा उन्हे तराश दूँ //
पर क्या कर सकता हूँ सब शक से अंधे हो गये
अपनी समझ मे अब खुदा ज़माने में बंदे हो गये //
घर खोजने निकला पर जहाँ देखा मकान मिला
सब फरिश्ते बन गये मुझे एक न इंसान मिला //

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