फ़ुर्सत हो तो देखो
स्नेह प्रेम और प्रीत का प्याला कभी न तुम ठुकराना जी
प्रेम स्नेह न बिके हाट में पड़ेगा क्या यह समझाना जी //
याद करो बचपन के दिन वह साथियों के संग गुज़रे पल
दिल क्या तुम्हारा न चाहे उस वक़्त को फिर से लाना जी //
बहता समय न रुकता कभी इस समय का समझो मोल
सच्चा यार जो लौटा दर से उसे फिर वापस न आना जी //
पार्टी शार्टी मौज मस्ती करने को भीड़ तो जुटा लोगे तुम
समझे जो दिल की बात तुम्हारी कोई ऐसा भी तो होना जी //
'कुंदन' को जो सही लगा उसने तो खोल दिल कह दिया
अब तो मर्ज़ी है र्तुंहारी इसे दिलमें बसाना या फेंकना जी //
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