देश में बेईमानी से भरी राजनीति पर एक मार
चल उड़ जा रे पंछी के अब यह देश हुआ पागल खाना
चल उड़ जा रे पंछी---------
ख़तम हुए दिन उस पार्टी के प्रवचन जिसने सुनाया था
देशभक्ति के सारे भाषण तो गैस भरा गुब्बारा था
इनको कुर्सी से था मतलब- तुझको क्या यह पता न था
देख लिया एक एक करके हर नेता है कमीना
चल उड़ जा रे पंछी के अब यह देश हुआ पागल खाना
चल उड़ जा रे पंछी---------
तूने तो फ़ेसबुक पर आ कर इनको दिया बढ़ावा था
तेरे सच्चे दिल की भावना इनके लिए तूने चढ़ाया था
काश कि तुझको पता यह होता सब कुछ यह छलावा था
अपनी ग़लती पर रे पंछी पड़ता ना तुझको रोना
चल उड़ जा रे पंछी के अब यह देश हुआ पागल खाना
चल उड़ जा रे पंछी---------
भूल जा अब वो सारे वादे और अच्छे दिनों के सपने
सपने तो सपने ही होते हैं कब कहाँ हुए हैं यह अपने
जोश में अक्सर होश गँवाते हुए देखे हैं यहाँ कितने
अपनी ग़लती को रे पंछी अब तुझे सही है करना
चल उड़ जा रे पंछी के अब यह देश हुआ पागल खाना
चल उड़ जा रे पंछी---------
जो कुछ भी 'कर' ने किया था - उसे 'कमल' ने भी दोहराया
जाने देश से कब रे हटेगा - इस मनहूसियत का रे साया
जिसने है कुर्सी जब भी संभाली - जनता को धत्ता बताया
हे भगवन तुम चुप क्यों बैठे- अब तुमको ही है कुछ करना
चल उड़ जा रे पंछी के अब यह देश हुआ पागल खाना
चल उड़ जा रे पंछी---------
चल उड़ जा रे पंछी के अब यह देश हुआ पागल खाना
चल उड़ जा रे पंछी---------
ख़तम हुए दिन उस पार्टी के प्रवचन जिसने सुनाया था
देशभक्ति के सारे भाषण तो गैस भरा गुब्बारा था
इनको कुर्सी से था मतलब- तुझको क्या यह पता न था
देख लिया एक एक करके हर नेता है कमीना
चल उड़ जा रे पंछी के अब यह देश हुआ पागल खाना
चल उड़ जा रे पंछी---------
तूने तो फ़ेसबुक पर आ कर इनको दिया बढ़ावा था
तेरे सच्चे दिल की भावना इनके लिए तूने चढ़ाया था
काश कि तुझको पता यह होता सब कुछ यह छलावा था
अपनी ग़लती पर रे पंछी पड़ता ना तुझको रोना
चल उड़ जा रे पंछी के अब यह देश हुआ पागल खाना
चल उड़ जा रे पंछी---------
भूल जा अब वो सारे वादे और अच्छे दिनों के सपने
सपने तो सपने ही होते हैं कब कहाँ हुए हैं यह अपने
जोश में अक्सर होश गँवाते हुए देखे हैं यहाँ कितने
अपनी ग़लती को रे पंछी अब तुझे सही है करना
चल उड़ जा रे पंछी के अब यह देश हुआ पागल खाना
चल उड़ जा रे पंछी---------
जो कुछ भी 'कर' ने किया था - उसे 'कमल' ने भी दोहराया
जाने देश से कब रे हटेगा - इस मनहूसियत का रे साया
जिसने है कुर्सी जब भी संभाली - जनता को धत्ता बताया
हे भगवन तुम चुप क्यों बैठे- अब तुमको ही है कुछ करना
चल उड़ जा रे पंछी के अब यह देश हुआ पागल खाना
चल उड़ जा रे पंछी---------
No comments:
Post a Comment