Sunday, July 27, 2014



मुझे एक पोस्ट लिखने में जितना समय लगता है शायद उसका 10 % सदस्य भी इसे देखते नहीं- फिर भी जब मैं अपें स्वार्थ के लिए नहीं लिख रहा हूँ और न ही मैं को अश्लील या असभ्य बात लिख रहा हूँ मैं क्यों अपना मुँह बंद रखूं- तो आइए आपको सुनाते हैं एक कथा -
एक सज्जन थे मेरी उम्र के - उनके पोते का उपनयन संस्कार का कार्यक्रम बना - सोचा की मेहमान अगर बढ़िया रसगुल्ला खाएँगे तो कितने खुश होंगे - इस लिए शहर के एक नामीहलवाई से- जिसकी बड़ी तारीफ़ की थे सभी ने- अपनी बात कही और सारा पैसा भुगतान कर के भी आ गये -
उपनयन का दिन भी आया भोज भी ख़तम हो गया पर हलवाई न आया रसगुल्ला ले कर - एक हफ्ते बाद आया हलवाई- उसे देखते ही सज्जन का गुस्सा फट पड़ा - कहा अब किस लिए आए हो - भोज तो ख़तम हो गया - अब इनका मैं क्या करूँगा - मेरे श्राद्ध के भोज मैं परोसना है क्या ..
हलवाई निर्लज की तरह हंसते हुए कहा - आपकी तो उम्र हो ही चुकी है- भगवान की कृपा हुई तो यह भी हो जाएगा जल्दी- मैं दुआ करूँ क्या ?
आपको लगता नहीं यह सज्जन वोटर थे और हलवाई हाल की सरकार जो समय का मोल समझने को तय्यार ही नहीं -

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