Monday, July 14, 2014


ज़मीन पर बिखरे सूखे फूलो को देख
डाली पर खिलते फूल जब हँसने लगे //
मुरझाए वह फूल देखा उदास नज़रों से 
और खिलते फूल को वह यूँ कहने लगे //
ऐसा भी एक दिन था हम भी खिलते थे 
पौधे पे रहके क़िस्मत पे नाज़ करते थे //
पता न था खुशियों के दिन चार होते हैं
जैसे हंसते हो तुम अब हम भी हंसते थे //
देखते देखते दिन हमारे बदल गये 
गिर के डाली से हम खाक में मिल गये //
फिर भी तसली है नये पौधे हम से बनेंगे
और फिर से फूल डाली पर मुस्कराएँगे //

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