Sunday, July 27, 2014



* नोट " " में फिल्मों के नाम हैं

"आज का एम एल ए" समझे " बेवक़ूफ़" " अवाम" को
हर "देश प्रेमी" है "भोला भाला" जपता है "तेरे नाम " को--1
आए कभी बन "बंबई का बाबू" और कभी "बंबई का चोर"
"क़समें वादे" खाए "रात और दिन" लाएँगे "हम" "नया दौर"--2
"चेहरे पे चेहरा" लगा कर फिरते रहते हैं यह "बे-ईमान"
:नमकहलाल" खुदको बताए"हक़ीक़त" में जो "नमक हराम"--3
"सच्चाई" की बनगयी "समाधि" "लफंगे" की हो रही "जीत"
"दुनिया " पर कहती है "यकीन" से " प्रीत ना जाने रीत "--4
यह कैसी"गहरी चाल" है खाए "संसार" "चक्कर पे चक्कर
"लूट मार" मचा "शरीफ बदमाश" हो जाते हैं "रफू चक्कर:--5
"गंगा जमुना" का है :किनारा" फिर भी :"आदमी" है "प्यासा"
"दस नंबरी" बन गया "सन्यासी" "नसीब" है "कलयुग" ऐसा--6
"राम तेरे देश में " " आज और कल" "ख़ुदग़र्ज़" पाए "इज़्ज़त"
"अपन देश" का देखो हाल " पैसा ही पैसा" बना दे "क़िस्मत "--7
"तक़दीर"पर "आँसू" न बहा छोड़ "फरियाद" "खोज" "नई राहें"
"कुंदन" बन तू "शोले" में जलकर "नया ज़माना" की फैली बाहें-- 8
मित्रों अमर शहीद आज़ाद जी के जन्म दिवस पर एक छोटी सी कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ- आशा करता हूँ कम से कम 4 या 6 तो पसंद करेंगे ही- टिप्पणी न सही

श्री----- श्री हीन हो गया भारतवर्ष खो गया जो आप जैसा सपूत
च ----- चंदनसे देश वंचित रह गया - गद्दार लोगों की ऐसी करतूत
द्र ----- द्रव्य अब देश इनकी नज़रमें आपकी नज़र में जो थी माता
शे ----- शेर सम वीर बलिदान हो गये - कापुरुषों ने जला दी चिता
ख ---- खच्चर देश में बने है "चेतक" दुर्भाग्य है यह कहो रे कैसा
र ----- रक्त ही जिनका दूषित हो- रहे सुरक्षित मेरा देश कैसा
आ ---- आओ लौट कर हे महावीर - तुमको रो रो के पुकारे यह देश
जा ---- जाने कहाँ पर खो गये तुम- कैसे पहुँचे तुम तक यह संदेश
द ----- दसो दिशाएं ढूँढ रहे हैं तुमको- लौट आते काश आज़ाद जी
जी ---- जी तो अपना हर्षित हो जाता - गद्दार जनों की होती बरबादी
स्वर्गीय बाल गंगाधर तिलक जी के जन्म दिवस पर एक छोटी कविता

बा ----- बातों के थे धनी आप - स्वाभिमान पूंजी थी आपकी 
ल ----- लहू में इतना उबाल था तो तख्त हिला फिरंगियों की
ग ----- गंगा माता के नीर सम शुद्ध पवित्र थे आपके विचार 
गा ----- गाते रहे राष्ट्र वंदना - समझौता कभी न किया स्वीकार
ध ----- धरती देश की हो गयी हर्षित आप सा पाकर पुत्र वीर 
र ----- रक्त तिलक जो धारण कर ले शत्रु के छाती को भी चीर 
ति ---- तीरथ बन गया वह नगर आपने जिस में लिया जनम
ल ---- लगन और निष्ठा के बाल आपने किए दुष्कर करम
क ----- कहते जाएँ फिर भी आपके गुण का क्या करें बखान
जी ---- जी चाहे फिर से भारत में जन्मे कोई तिलक महान
दूसरा चुटकुला

पता नहीं क्या हुआ वयोवृद्ध नेता ने सुबह सुबह अपने सचिव से कहा डॉक्टर साहब को फोन लगाओ और जल्द से जल्द आने को कहो - सचिव बेचारा हुक्म का गुलाम- वैसा ही किया - आधे घंटे में डॉक्टर जो नेता का बचपन का सखा भी था आ गया
डॉक्टर - अरे यार क्या हुआ - इतनी हड़बड़ी में बुलाया - मैं बिना नहाए ही चला आया- सब ठीक ठाक तो है न
नेता - नेता नहीं यार घबराने की कोई बात नहीं - तुझे मैंने दोस्त की हैसियत से बुलाया - बीमार के रूप में नहीं - एक सलाह लेनी है तुझसे
डॉक्टर- तो बोल न फिर
नेता - यार कल रात को एक सपना आया मुझे- देखा बढ़ती उम्र की बात को ले कर मैं इस्तीफ़ा दे रहा हूँ- उसी सिलसिले में तुझसे बात करनी है
डॉक्टर - अरे भाई बात क्या करनी है - बड़ा ही नेक विचार है - शुभ काम में देर कैसी
नेता - तू मेरा दोस्त है ? लानत है तुझ पर - मैनें तुझे इस लिए बुलाया कि मेरे दिमाग़ की जाँच कर जल्दी ऐसी वाहियात बात मेरे दिमाग़ में आई कैसे ..
सोचिए देश का हाल क्यों ऐसा है
देश में बेईमानी से भरी राजनीति पर एक मार

चल उड़ जा रे पंछी के अब यह देश हुआ पागल खाना
चल उड़ जा रे पंछी---------
ख़तम हुए दिन उस पार्टी के प्रवचन जिसने सुनाया था 
देशभक्ति के सारे भाषण तो गैस भरा गुब्बारा था
इनको कुर्सी से था मतलब- तुझको क्या यह पता न था
देख लिया एक एक करके हर नेता है कमीना 
चल उड़ जा रे पंछी के अब यह देश हुआ पागल खाना
चल उड़ जा रे पंछी---------
तूने तो फ़ेसबुक पर आ कर इनको दिया बढ़ावा था
तेरे सच्चे दिल की भावना इनके लिए तूने चढ़ाया था
काश कि तुझको पता यह होता सब कुछ यह छलावा था
अपनी ग़लती पर रे पंछी पड़ता ना तुझको रोना
चल उड़ जा रे पंछी के अब यह देश हुआ पागल खाना
चल उड़ जा रे पंछी---------
भूल जा अब वो सारे वादे और अच्छे दिनों के सपने
सपने तो सपने ही होते हैं कब कहाँ हुए हैं यह अपने
जोश में अक्सर होश गँवाते हुए देखे हैं यहाँ कितने
अपनी ग़लती को रे पंछी अब तुझे सही है करना
चल उड़ जा रे पंछी के अब यह देश हुआ पागल खाना
चल उड़ जा रे पंछी---------
जो कुछ भी 'कर' ने किया था - उसे 'कमल' ने भी दोहराया
जाने देश से कब रे हटेगा - इस मनहूसियत का रे साया
जिसने है कुर्सी जब भी संभाली - जनता को धत्ता बताया
हे भगवन तुम चुप क्यों बैठे- अब तुमको ही है कुछ करना
चल उड़ जा रे पंछी के अब यह देश हुआ पागल खाना
चल उड़ जा रे पंछी---------
मूल गीत - कठपुतली - मंज़िल वही है प्यार की राही बदल गये

कुर्सी वही है सत्ता की 
बस लोग बदल गये 
अच्छे दिनों के सपनों में
हम खो गये ----
गद्दी जो उनको मिली 
नीयत ही बदल गयी
देखी जो यह नौटंकी
तबीयत ही तो हिल गयी
समझा था जिनको वैष्णव
अघोरी वो निकल गये
अच्छे दिनों के सपनों में
हम खो गये ----
ढेरों तो सुनाए उपदेश
कहे थे सर्वोपरि देश
देखी जो करतूत अब
पहुँचा है मान को रे क्लेश
हम को दिखाए राहें जो
उनसे तो वह हट गये
अच्छे दिनों के सपनों में
हम खो गये ----
देश में परिवर्तन की आशा और तद्जनित निराशा को कुछ शब्दों का रूप दे रहा था 2 दिनों से कुछ पेरोडी प्रस्तुत है आपकी सेवा में--

मूल गीत - दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा- फिल्म अमानुष

दिखलाया हमें पक्षीराज घोड़ा
पर खच्चर भी न साथ एक छोड़ा
गड्ढों से भर सड़कों पर दौड़ा कर
यह हाथ पैर रे सब तोड़ा , यह हाथ पैर रे सब तोड़ा ,----

बोला था कि अच्छे दिन लाएँगे 
और झूले में सब को झूलाएँगे
यह धोखा तो हुआ रे बहुत बड़ा - यह हाथ पैर रे सब तोड़ा ,----

हम भी भोले थे रे कितने बातों में इनकी आ गये
काँचके टुकड़ेको जाने क्यों कीमती हीरा मान गये
पाजामा भी ले गये रे खोल के नाडा- यह हाथ पैर रे सब तोड़ा ,--

वादों से अपने यह तो फिर गये
हम फिर से अंधेरों में घिर गये
उजालों ने साथ फिर से छोड़ा - यह हाथ पैर रे सब तोड़ा ,-----
सोच समझ कर कुछ ऐसा बोलो कि बात से पलट जाने की नौबत न आए - जो भी करो सोच समाझ का र करो कि बाद में खेद व्यक्त करने की नौबत न आए .- पर सत्ता सुख भोगने वाले अधिकतर नेता इन बातों पर कभी ध्यान नहीं देते . - भा ज पा को औरों से अलग सोचा था लेकिन अफ़सोस कोयले की खदान में चूने की भट्टी तो स्वप्न में भी संभव नहीं है- अपने क्षोभ को एक पेरोडी का रूप दे रहा हूँ - मूल गीत है फिल्म "हरियाली और रास्ता " का - इब्त्दा-ए- इश्क़ में .....

इब्त्दा-ए- देश प्रीति में . पागल जैसे भागे
अल्लाह जाने क्या होगा आगे -
ओ मौला जाने क्या होगा आगे-------
रोका कई बार तुझ को- तेरा कौन वह लागे
अल्लाह जाने क्या होगा आगे -
ओ मौला जाने क्या होगा आगे-------

क्या कहूँ कुछ कहा भी न जाए
बिन कहे भी रहा नहीं जाए
देख कर फरेबी यह चेहरे
दर्द दिल का सहा नहीं जाए
देश प्रेम पे झाड़ प्रवचन - पोथि फाड़ भागे
अल्लाह जाने क्या होगा आगे -
ओ मौला जाने क्या होगा आगे-------

देश प्रेम अब बन गया सौदा
अपना फायदा एक ही मसौदा
अब तो इनको जान रे मूरख
यह हैं सियाने तू एक गधा
तू है जनता तूने खुद दुख दर्द है माँगे
अल्लाह जाने क्या होगा आगे -
ओ मौला जाने क्या होगा आगे-------

तौबा कर लें नेताओं से अब
अक ही थैली के चट्‍टे बट्‍टे सब
चिकनी चुपड़ी बातें कर के
चने की झाड़ पे चढ़ाते हैं सब
चाहे "मन्नू" या हो " नामो" - सारे काले काग़े
अल्लाह जाने क्या होगा आगे -
ओ मौला जाने क्या होगा आगे-------

खुद ही नेक बना रहना रे तू
सीधे राह पे चलना सदा तू
आज नहीं तो कल को देखना
इनका उतरेगा मुखौटा रे तू
बकरे की जो माँ है खैर मनाए कब तक आगे
अल्लाह जाने क्या होगा आगे -
ओ मौला जाने क्या होगा आगे-------

पहले उपर से नीचे तक जो अक्षर दिए गये हैं बाईं तरफ उसे पढ़ लें एक नार

भा-------- भाया भाया कहे तुझको- काटे गला जब मौका मिले 
र---------- रखे तुझ को भुलावे में सदा - करे बहाना जो उनसे मिले
त--------- तर्क देगा इस तरह तुझे कि मजबूर हो जाए मानने को
के--------- केला खुद तो निगल लेगा वह छिलका देगा रे खाने को
रा--------- राग सुनाएगा मीठी ऐसी - सो कर तू रहेगा सपने में मस्त
ज--------- जब जागेगा तो देखेगा -भाग्य रवि तेरा तो हुआ है अस्त
ने--------- नेकी का उपदेश देगा तुझे लेकिन डूबा रहेगा बदी में खुद 
ता-------- तारीफ राजनेताओंकी भारत में 'कुंदन'ने भुगता है भाई खुद


मुझे एक पोस्ट लिखने में जितना समय लगता है शायद उसका 10 % सदस्य भी इसे देखते नहीं- फिर भी जब मैं अपें स्वार्थ के लिए नहीं लिख रहा हूँ और न ही मैं को अश्लील या असभ्य बात लिख रहा हूँ मैं क्यों अपना मुँह बंद रखूं- तो आइए आपको सुनाते हैं एक कथा -
एक सज्जन थे मेरी उम्र के - उनके पोते का उपनयन संस्कार का कार्यक्रम बना - सोचा की मेहमान अगर बढ़िया रसगुल्ला खाएँगे तो कितने खुश होंगे - इस लिए शहर के एक नामीहलवाई से- जिसकी बड़ी तारीफ़ की थे सभी ने- अपनी बात कही और सारा पैसा भुगतान कर के भी आ गये -
उपनयन का दिन भी आया भोज भी ख़तम हो गया पर हलवाई न आया रसगुल्ला ले कर - एक हफ्ते बाद आया हलवाई- उसे देखते ही सज्जन का गुस्सा फट पड़ा - कहा अब किस लिए आए हो - भोज तो ख़तम हो गया - अब इनका मैं क्या करूँगा - मेरे श्राद्ध के भोज मैं परोसना है क्या ..
हलवाई निर्लज की तरह हंसते हुए कहा - आपकी तो उम्र हो ही चुकी है- भगवान की कृपा हुई तो यह भी हो जाएगा जल्दी- मैं दुआ करूँ क्या ?
आपको लगता नहीं यह सज्जन वोटर थे और हलवाई हाल की सरकार जो समय का मोल समझने को तय्यार ही नहीं -

Monday, July 14, 2014

बेटा - पिताजी अलग अलग न्यूज़ चॅनेल पर यह जो BREAKING NEWS दिखता है बीच बीच में उसे BREAKING क्यों कहा जाता है बताइए तो ज़रा

पिता - बेटे मैं ठहरा पुराने ज़माने का आदमी तू ही बता दे

बेटा - अच्छा पहले बताइए BREAKING का मतलब क्या है

पिता - तोड़ना 

बेटा - हाँ ठीक कहा - तो देश में क़ानून जिसे हरदम तोड़ा जाता रहता है उसके बारे में जो NEWS हो उसे BREAKING NEWS कहा जाता है

पिता - जैसे - कोई उदाहरण दे कर बता

बेटा - सर्वोच्च न्यायालय का आदेश को ठुकराकर भी सुब्रत रॉय अपनी शान बनाए हुए है- पुलिस उसे गिरफ्तार भी न कर सकी यह हुआ एक क़ानून तोड़नेवाला BREAKING NEWS - दूसरा हुआ क़ानून तोड़ने वाले बाहुबलियों से बिहार में भा ज पा ने ताल मेल किया यह भी एक BREAKING NEWS है

पिता सही कहा बेटे - भगवान बचाए इस देश को
वैसे तो एक परंपरा है 'होली' पर हास्य व्यंग्य का - तो इसी शृंखला में कुछ व्यंग्य भरे नयी संज्ञा पर नज़र डालें- बुरा न मानो होली है
1 देश - वह जो हमें सब 'दे' पर हमेशा श-श-श (खामोश रहे ) 
2 राष्ट्र - वह जगह जहाँ पर हर कोई 'रस' रचाए और फिर 'टर' जाए 
3 राष्ट्रपति - वह व्यक्ति जो देखे सब कुछ पर 'पति' की तरह बोले कुछ भी नहीं 
4 प्रधानमंत्री - जो अपने आपको ही सबसे प्रधान समझे- देश समाज जाए भाड़ में
5 गृह मंत्री - जो देश के लिए एक 'पाप ग्रह' साबित हो
6 वित्त मत्री - जो अपने वित्त की बढ़ोतरी की चिंता करे हर पल
7 प्रतिरक्षा मंत्री - जो केवल अपने खुद की रक्षा के प्रति ईमानदार हो
8 अध्यक्ष - जो पूरा तो नहीं पर हाँ ' आधा यक्ष ' प्रमाणित हो
9 सूचना और प्रसारणमंत्री - जो सूचना को दबाए और अपने आपको प्रसारित करता रहे
10 क़ानून मंत्री - जो 'कान' में 'ऊन' ठूंस कर आराम की नींद सोता रहे
11. महिला ,शिशु विकास मंत्री जो महिलाओं और शिशुओं की 'विनाश' का ज़िम्मेदार हो
12.ह्यूमन राइट्स कमीशन-- जो WRONG को RIGHT बनानेका COMMISSION खाए
13 चुनाव - चूने में आब (पानी) डाल कर जो देश को उत्तेजित करे
14. शपथ ग्रहण - वह शपथ जो देश को ग्रहण लगाए
** आप अगर चाहें इसे आगे बढ़ा सकते हैं

वैसे तो एक परंपरा है 'होली' पर हास्य व्यंग्य का - तो इसी शृंखला में कुछ व्यंग्य भरे नयी संज्ञा पर नज़र डालें- बुरा न मानो होली है
1 देश - वह जो हमें सब 'दे' पर हमेशा श-श-श (खामोश रहे ) 
2 राष्ट्र - वह जगह जहाँ पर हर कोई 'रस' रचाए और फिर 'टर' जाए 
3 राष्ट्रपति - वह व्यक्ति जो देखे सब कुछ पर 'पति' की तरह बोले कुछ भी नहीं 
4 प्रधानमंत्री - जो अपने आपको ही सबसे प्रधान समझे- देश समाज जाए भाड़ में
5 गृह मंत्री - जो देश के लिए एक 'पाप ग्रह' साबित हो
6 वित्त मत्री - जो अपने वित्त की बढ़ोतरी की चिंता करे हर पल
7 प्रतिरक्षा मंत्री - जो केवल अपने खुद की रक्षा के प्रति ईमानदार हो
8 अध्यक्ष - जो पूरा तो नहीं पर हाँ ' आधा यक्ष ' प्रमाणित हो
9 सूचना और प्रसारणमंत्री - जो सूचना को दबाए और अपने आपको प्रसारित करता रहे
10 क़ानून मंत्री - जो 'कान' में 'ऊन' ठूंस कर आराम की नींद सोता रहे
11. महिला ,शिशु विकास मंत्री जो महिलाओं और शिशुओं की 'विनाश' का ज़िम्मेदार हो
12.ह्यूमन राइट्स कमीशन-- जो WRONG को RIGHT बनानेका COMMISSION खाए
13 चुनाव - चूने में आब (पानी) डाल कर जो देश को उत्तेजित करे
14. शपथ ग्रहण - वह शपथ जो देश को ग्रहण लगाए
** आप अगर चाहें इसे आगे बढ़ा सकते हैं

खरे सामान ले कर जो जा बैठे बाज़ार में
बगल के दुकानदारों ने देख कर हँसा मुझे //
समझा मैने कि स्वागत वो कर रहे हैं मेरे 
उनको देख मुसकराना पड़ा भी भई मुझे //
सभीने मुझे कहा अरे ओ अक्ल के दुश्मन
खिल्ली उड़ाने को हम ने हंसा था तुझ पर //
और तू समझा हम खुश हो रहे हैं तुझ पर 
क्या क्या लेकर आया जा होशकी दवा कर //
किस ज़माने में तू जी रहा इतना पता नहीं
खरा माल अबके किसी बाज़ार्ं में चलता नहीं //
धंधा गर करना है तो जा मिलावट सीख ले
खोटा माल को चमका कर बेचना तू सीख ले //
सुनकर बातें उन अहमको की मैं हैरान हो गया
हर पल ऩफा- नुकसान इंसान को क्या हो गया//
आया था मैं दर्द खरीदू और खुशियाँ बेच दूँ
दिल जो सब पत्थरके हो गये जा उन्हे तराश दूँ //
पर क्या कर सकता हूँ सब शक से अंधे हो गये
अपनी समझ मे अब खुदा ज़माने में बंदे हो गये //
घर खोजने निकला पर जहाँ देखा मकान मिला
सब फरिश्ते बन गये मुझे एक न इंसान मिला //


इतना होशियार न बनाना मुझे भगवन
कि लाशो पर खड़े हो कद मैं ऊँचा करूँ//
उससे कहीं बेहतर होगा जीवन यह मेरा 
सुखसे जी लें सभी जिनके लिए मैं मरूँ //
जीवन वही जीवन औरों के काम जो आए
जिसका आना तय उस मौत से क्यों डरूँ //

ज़मीन पर बिखरे सूखे फूलो को देख
डाली पर खिलते फूल जब हँसने लगे //
मुरझाए वह फूल देखा उदास नज़रों से 
और खिलते फूल को वह यूँ कहने लगे //
ऐसा भी एक दिन था हम भी खिलते थे 
पौधे पे रहके क़िस्मत पे नाज़ करते थे //
पता न था खुशियों के दिन चार होते हैं
जैसे हंसते हो तुम अब हम भी हंसते थे //
देखते देखते दिन हमारे बदल गये 
गिर के डाली से हम खाक में मिल गये //
फिर भी तसली है नये पौधे हम से बनेंगे
और फिर से फूल डाली पर मुस्कराएँगे //

फ़ुर्सत हो तो देखो 

स्नेह प्रेम और प्रीत का प्याला कभी न तुम ठुकराना जी 
प्रेम स्नेह न बिके हाट में पड़ेगा क्या यह समझाना जी //
याद करो बचपन के दिन वह साथियों के संग गुज़रे पल
दिल क्या तुम्हारा न चाहे उस वक़्त को फिर से लाना जी //
बहता समय न रुकता कभी इस समय का समझो मोल
सच्चा यार जो लौटा दर से उसे फिर वापस न आना जी //
पार्टी शार्टी मौज मस्ती करने को भीड़ तो जुटा लोगे तुम 
समझे जो दिल की बात तुम्हारी कोई ऐसा भी तो होना जी //
'कुंदन' को जो सही लगा उसने तो खोल दिल कह दिया 
अब तो मर्ज़ी है र्तुंहारी इसे दिलमें बसाना या फेंकना जी //
एक लघु कथा - पर है एक बड़ी सीख इस में

आज बहुत खुश था वह- उसका बचपन का साथी आज इतने साल के बाद जो आया है शहर में - यह बात और है एक लंबे समय से दोनों के बीच कोई संपर्क नहीं था - पर उसे खुशी है कि उसका बचपन का यार आज महानगर में जा कर देश के एक सफल उद्योगपति का दर्जा हासिल कर चुका है और वह यहीं रह गया स्कूल का अध्यापक बन कर ..
शाम को निकल पड़ा दोस्त से मिलने - रास्ते में हलवाई की दुकान देखी - गरमा गरम समोसा देख रुक गया - याद आया दोस्त को समोसा ख़ास पसंद था दोस्त को- एक बड़ा सा पार्सल बनाया और फिर चल पड़ा
दोस्त के घर पहुँचा देखा बड़ी भीड़ है लोगों की - उसने अपना परिचय दिया फिर भी उसे रोक दिया गया - यह कह कर साहब ज़रूरी बात कर रहे हैं आप यहीं इंतेज़ार करें- करीब 2 घंटे बाद उसे बुलाया गया - अंदर गया तो दोस्त ने सवालिया निशान दाग दिया - कहिए कोई काम था
इसने अपना नाम बताया तो दोस्त ने एक नक़ली मुस्कान के साथ कहा अच्छा याद आया - कैसे आना हुआ
इसने समोसे का पार्सल बढ़ा दिया और कहा बचपन में तुमको समोसे बड़े पसंद थे न - खास तुम्हारे लिए ले कर आया हूँ
"तुम" कहे जाने पर दोस्त को कुछ बुरा लगा यह बात इसने स्पष्ट देख लिया
अनमना सा हो कर दोस्त ने पार्सल पकड़ा और फिर अपने नौकर को आवाज़ दी - नौकर अंदर आया तो पार्सल उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा - देखो यह हमारे शहर का मशहूर समोसा है - इसे तुम लोग मिल बाँट कर खा लो
इस के मन में दोस्ती का जोश जो था उस पर घड़ा भर पानी पड़ चुका था..
दोस्त ने कहा - और कोई ख़ास काम न हो तो मैं ज़रा अपने काम पर ध्यान दूँ अब .
इसने हाथ जोड़ दिए और रुँधे गले से कहा - माफ़ करना साहब- अकारण आपका समय खराब किया - बहुत बहुत धन्यवाद आपका जो अपने दर्शन करने की अनुमति दी .
बहते हुए आँसू को रोकने का असफल प्रयास करते हुए तूफान की तेज़ी से निकल गया कमरेसे ......
मैं अक्सर कहा करता हूँ कि कभी भी किसी से बी कुछ भी सीखा जा सकता है - उम्र कभी अक्ल का पैमाना नहीं होता ..

बेटा खुशी खुशी घर आया और माँ को मिठाई देते हुए कहा - मेरे मित्र के यहाँ उसकी नयी बहन आई है - यह ले मीठाई

माँ ने कहा - मरदूद किसी के यहाँ बेटी हुई तो तू क्यों उछल रहा है- नालायक

बेटे ने कहा - माँ कल हमारे यहाँ दीदी की शादी हो और मोहल्ले का कोई भी तेरे घर न आए - चेहरा लटका कर बैठा रहे तो तुझे उस में मज़ा आएगा क्या ?

माँ ने बेटे को गले लगा लिया और कहा तूने मेरी आँखें खोल दी बेटे 

दूसरों की खुशी का हिस्सा बानिए - भगवान खुशी के मौके बार बार नहीं देते
ज़ख़्म ज़माने ने जितने दिए -उतने और किसी को न मिले 
हर एक मनमें प्यार हो प्रभु - दीप जले सदा और फूल खिले //
नाम-ओ-निशान मिटे रंजिशका - उलफत के महफ़िल ही सजे 
एक मन एक जान हों सब - यहाँ दिल से दिल का तार मिले //
चोट लगे किसी एक को गर - हर एक आँखों में आँसू छलके 
कोई खुशी में डूबा हो जब - हर एक लब पर तबस्सुम खिले //
मिनी ने कहा जो तू सुधरेगा नहीं - इसका तू अफ़सोस न कर
अपनाता जा तू इन राहों पर चाहे फूल मिले या खार मिले //
कोई गैर नहीं यहाँ 'कुंदन' हर कोई तेरा तो अपना ही है 
गाता जा तराना यही तू - करता जा दुआ कि हो सबके भले //
एक लघु हास्य कथा

बेटा - पिता जी कहा जाता है दुनिया में कोई ऐसा नहीं जिसे गाना और रोना न आता हो
पिता - हाँ बेटे पुरानी कहावत है 
बेटा - यह सच है क्या ?
पिता - बिल्कुल सच है बेटा - सिर्फ़ समय समय का फेर है
बेटा - मैं समझा नहीं - ज़रा स्पष्ट रूप से समझाइये 
पिता - शादी से पहले जीवन में गाना ही गाना -----
बेटा - बाकी रहने दीजिए -- समझ गया शादी के बाद क्या होता है आपको देख कर
एक और पीड़ादायक लघु कथा

चारों तरफ लहलहता खेत - फसलों की भरमार- सुखी और संपन्न ग्रामवासी - ऐसा एक गाँव खोजना नहीं पड़ता था पहले - हर गाँव ऐसा हुआ करता था पहले
सरकार को फसल से अधिक लुभाया गाँव के लोगों का वोट - बैंकों की शाखाएँ खुलने लगी धड़ाधड़ गाँव में - जिनके पास पैसे थे उनसे जमा लिए और लोगों को लोन देना शुरू किया - सरकारी लोग और असाधु बैंक के कार्मिकों ने बहकाना शुरू किया लोगों को लोन वापस न करने को- क़र्ज़ माफी होने लगी - लोग आलसी होने लगे - जिन्होने बैंक में जमा किए थे अपनी क़िस्मत पे रोने लगे जमा पर व्याज कम होता देख कर
गाँव से शहर की तरफ भागने लगे लोग रोज़गार की तलाश में - बैंक का लोन डकार कर जो पड़े रहे गाँव में अब किसी काम के न रहे - जिन गाँव में कभी हरियाली हुआ करती थी आज वहाँ बंजर खेत. और बदहाली
नतीजा - आलासियों की बढ़त - पैदावार कम - फसल और सब्ज़ियों के कीमत आसमान पर - यही है देन बैंकों के राष्ट्रीयकरण का - और 5 साल बाद जिसकी मनेगी स्वर्ण जयंती - धन्य हैं देश के लूटेरे नेता - बैंक कर्मचारी और दलाल
थोड़ा सा मनोरंजन हो जाए अब -

बेटा - पिता जी- अपने देश में लोक तंत्र वाली राजनीति है न ?
पिता - हाँ बेटे
बेटा - तो फिर लोग जब किसी भी बात को ले कर प्रदर्शन करते हैं शांतिपूर्ण ढंग से - तो उन्हे पुलिस के डंडे क्यों पड़ते हैं बताइए 
पिता - बेटा शासन की गद्दी पर जो हो कुछ भी कर सकता है 
बेटा - यह बात तो सच है - पर इसके पीछे तर्क क्या है- बताइए 
पिता - पता नहें बेटे - तू ही बता 
बेटा - कहा यह जाता है - राजनीति में कूटनीति आवश्यक है - और जब कूटने की बात आए तो जनता के अलावा और कौन है जिसे सरकार कूटे ?
ठीक कहा न बेटे ने ?
एक लघु कथा
बहुत बड़े डॉक्टर थे यह - इनसे बात करने के लिए भी हफ्ते भर पहले नंबर लगाना पड़ता था इनके क्लिनिक पर - सारे शहर में मशहूर ..
उनका बच्चा अचानक एक दिन बीमार पड़ गया - स्कूल से लौटा तो तबीयत बिगड़ी हुई थी- पत्नी ने आकर कहा सुनो मुन्ने की तबीयत कुछ ठीक नहीं है- ज़रा चल कर एक बार देख तो लो.
डॉक्टर साहब ने सुना - फोन उठाया और नंबर लगाया - कुछ बातें की - कुछ ही देर में एक और डॉक्टर आ पहुँचे इन के यहाँ . बच्चे को देखा दवा लिख दी और इन्हे पूछा आप खुद इतने बड़े डॉक्टर हैं तो फिर मुझे आपने किस लिए बुलाया भला
इन्होने जवाब दिया मैं इतना बड़ा डॉक्टर हूँ और मैं छोटे केस नहीं लेता उपर से मेरी फीस भी तो आपसे कहीं ज़्यादा है
ऐसे जानकार को मूरख कहने में क्या बुराई है बताइए - समाज ऐसे पंडितों से भरा पड़ा है
चुटकुला 

पति और पत्नी में बड़े ज़ोर से बहस छिड़ी थी - पत्नी का कहना था कि महिलाओं को हर युग में अत्याचार सहना पड़ता है - पति इससे सहमत नहीं था 

पति ने कहा देखो कटता कौन है मुर्गा और बकरा - मुर्गी और बकरी नहीं 

पत्नी ने कहा पशु पक्षी के उदाहरण मत दो

पति ने कहा ठीक है चलो बाहर घूमने चलते हैं वहीं बताऊँगा 

पत्नी ने कहा - बाहर क्यों ?

तुम हिसाब लगाना कितने गंजे मर्द देखे और मैं हिसाब लगाऊँगा कितनी महिलाएँ देखी जिनकी खोपड़ी सफाचट है- पता चल ही जाएगा किस पर अधिक अत्याचार होता है .

पत्नी ने सर झुका लिया कहा मुझे नहीं जाना है कहीं ...