आज सुबह "रंगोली" में सुना फिल्म "प्रिन्स" का गीत "बदनपे सितारें लपेटे हुए " सोचा इसपर हो जाए एक पेरोडी- पढ़िए, जिन्हे पसंद हो
कफ़न में वतन को लपेटे हुए
ओ शैतान-ए-आज़म किधर जा रहे हो
ज़रा पास आओ मुँह काला कराओ (2) -------1
वतन जब न होगा तो रे नामुराद
कहाँ जा के यह सर छुपाओगे तुम
जो पैसे रखें हैं विदेशों में ले
उन्ही को कहो क्या चबाओगे तुम------------ 2
जो खून चूसते रहते थे रात दिन
ए ख़टमल बता कैसे बिसरा दिया
ग़रीबों को झोपड़ जला कर तूने
हवेली को अपनी तो रोशन किया--------------3
खुदा का भी न ख़ौफ़ था रे तुझे
तू खुद को ही कहता रहा रे खुदा
है जिसने बनाई सारी क़ायनात
बनाया था तुझको क्या हमसे जुदा----------4
है खिदमत में बरकत न जाना रे तू
तेरे दिल में वहशत का डेरा जो था
शमा एक उलफत का जला जो लेता
तू शोहरत पे अपनी तो खुश ही होता----------5
तेरे ज़ुल्म की इंतेहा जो हुई
सज़ा लाजमी देनी तुझको ही था
तुझे नाज़ था कुर्सी पे रे अहमक
वही आज तुझसे हुई है जुदा---------------6
तू गुमनामी में हो जा अब लापता
यही सबसे वाजिब है तेरी सज़ा
जो मनहूस चेहरा तेरा न दिखे
तभी लेंगे सब ज़िंदगी का मज़ा-------------7
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