मित्रों पुराने अभिलेख बताते हैं कि इस देश में जो भे विदेश से आए, एक दिन यहाँ से सारे मूल्यवान पदार्थ ले कर चलते बने. तभी तो सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत के सारे पंख कतर दिए गये विदेशियों द्वारा और देशभक्ति का ढिंढोरा पीटनेवाले सरकर्ने इस मामले में कुछ किया ही नहीं अब तक. उल्टे एक और विदेशी को मौका दिया गया है अब. उसी बात पर एक पेरोडी प्रस्तुत है - मूल गीत है "दिल अपना और प्रीत पराई" का गीत "जाने कहाँ गयी"
जाने कहाँ गयी- जाने कहाँ गयी
सारा धन ले गयी ले गयी वह -------
देखते देखते क्या से क्या हो गया
देश का हाल यूँ कैसे ख़स्ता हुआ (2)
जाने कहाँ गयी- जाने कहाँ गयी
सारा धन ले गयी ले गयी वह -------
दोनों हाथों से वह लूटती ही रही
देख कर भी आँखें अपनी बंद रही (2)
जाने कहाँ गयी- जाने कहाँ गयी
सारा धन ले गयी ले गयी वह -------
अपने जो थे यहाँ, डोर उनसे रहे
भरके दामन में आग- मुफ़्त जलते रहे(2)
जाने कहाँ गयी- जाने कहाँ गयी
सारा धन ले गयी ले गयी वह -------
होश आया न क्यों- क्यों बहकते रहे
घर ना घाट मिला- धोबी के कुत्ते हुए(2)
जाने कहाँ गयी- जाने कहाँ गयी
सारा धन ले गयी ले गयी वह -------
वक़्त रहते अगर हट यह जाता परदा
जो है मेरा अभी- हाल वह न होता (2)
जाने कहाँ गयी- जाने कहाँ गयी
सारा धन ले गयी ले गयी वह -------
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