एक और दर्द भरा गीत सुना था फिल्म "ज़िंदगी" का "हमने ज़फ़ा न सीखी - उनको वफ़ा न आई " चलिए उसी पर हाथ आजमाएँ
हमने ज़फ़ा न सीखी- उनको वफ़ा न आई
हर बार उन्हे जिताया- गर्दन खुद ही कटाई-
अपने ही वोट के हाथों बर्बाद हो गये हम
किससे करें शिकायत अब किस की दें दुहाई--
हमको तो बाप बोला और पकड़े पैर भी वह
"गर्दभ" बना दिया है चुनाव ने हमको भाई ---
खाते रहे हैं धोखा क़िस्मत पे हम है रोते
पूछो कभी यह खुदसे क्यों अक्ल है न आई--
नक़ली फूलों में खुशबू बोलों कहाँ से आए
खुद मांझी बनके तुमने नैय्या को है डुबोई--
अब भी है वक़्त जागो- तुम मुल्क़को बचा लो
साधु न जानो उसको- जो है यहाँ कसाई----
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