देश का दुर्भाग्य है कि 6 दशकों से नेता हमें उल्लू बनाते आ रहे हैं और हम इसी में अपने आपको महिमा मंडित होते हुए मान अपनी पीठ ठोंक रहे है/ इलाहाबाद ऊच्च न्यायालय द्वारा जाति के आधार पर प्रचार करना को बंद किया जाना , अपराधियों के नेता बनने पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बोले जाने को ले कर जनता खुश हो रही है. परंतु एक बात स्थिर सत्य है, जब तक आम जनता की भावना न बदले कोई परिवर्तन नहीं आने वाला इस देश में. इसी को ले कर एक पेरोडी लिखी है फिल्म "चलती का नाम गाड़ी " के गीत पर आधारित बाजू------------ बाबू समझो इशारे- जनता जागो रे रहो होशियार- यहाँ नेता को हैवान कहते है सारे रहो होशियार----------- सौ बातों की एक बात यही है सोच समझ कर वोट डाले जो इंसान तो वही है नेता जो बोतल दे - सर उसका फोड़ दे नोट दिखाए जो दुलत्ति झाड़ दे मेरी बातों मतलब ज़रा तू समझ (2) बात का मतलब समझ ले अब तो वरना होगा रे बेड़ा गर्क, बाजू------------- हिल मिल के चलना यूँ ही साथी होशियार तुझे रहना होगा हो वह हाथ या हाथी तेरे हाथों मे तेरी क़िस्मत चाबी ले लेगा जो कोई छिन के होगी खराबी देश को अब तू ए जनता बचा(2) बात मान ले अब तू , बाजू---
Tuesday, July 30, 2013
देश का दुर्भाग्य है कि 6 दशकों से नेता हमें उल्लू बनाते आ रहे हैं और हम इसी में अपने आपको महिमा मंडित होते हुए मान अपनी पीठ ठोंक रहे है/ इलाहाबाद ऊच्च न्यायालय द्वारा जाति के आधार पर प्रचार करना को बंद किया जाना , अपराधियों के नेता बनने पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बोले जाने को ले कर जनता खुश हो रही है. परंतु एक बात स्थिर सत्य है, जब तक आम जनता की भावना न बदले कोई परिवर्तन नहीं आने वाला इस देश में. इसी को ले कर एक पेरोडी लिखी है फिल्म "चलती का नाम गाड़ी " के गीत पर आधारित बाजू------------ बाबू समझो इशारे- जनता जागो रे रहो होशियार- यहाँ नेता को हैवान कहते है सारे रहो होशियार----------- सौ बातों की एक बात यही है सोच समझ कर वोट डाले जो इंसान तो वही है नेता जो बोतल दे - सर उसका फोड़ दे नोट दिखाए जो दुलत्ति झाड़ दे मेरी बातों मतलब ज़रा तू समझ (2) बात का मतलब समझ ले अब तो वरना होगा रे बेड़ा गर्क, बाजू------------- हिल मिल के चलना यूँ ही साथी होशियार तुझे रहना होगा हो वह हाथ या हाथी तेरे हाथों मे तेरी क़िस्मत चाबी ले लेगा जो कोई छिन के होगी खराबी देश को अब तू ए जनता बचा(2) बात मान ले अब तू , बाजू---
आप लोगों को याद होगा किशोर कुमार का एक हास्य गीत - "चरणदास को पीने की जो आदत न होती "- उसी गीत पर आधारित एक पेरोडी प्रस्तुत है- पर इस बार निशाना कोई नेता नहीं बल्कि जनता है जो पैसे ले कर अपने वोट बेचती है- ध्यान दें- - लल्लू की माँ- दरवाज़ा तो खोल - पहले नाम तो बोल - अरे मैं हूँ लल्लू का बाप - धनीराम- ले कर आया हूँ साथ में तोहफा का गोदाम - अच्च्छा नेता से रुपये ले कर लाए हो - जब तक उस हराम के पैसे के तोहफे नहीं फेंकोगे यह दरवाज़ा नहीं खुलेगा - अरे मैने कहाँ लिए नेता ने प्यार से दिया - जब तक नोट के बदले वोट देने की आदत नहीं छोड़ोगे दरवाज़ा बंद मिलेगा नोट के बदले वोट देने की जो आदत न होती -जो आदत न होती तो आज मेरे देश की हालत ऐसी न होती ओ जी ए जी -------- नोटों से प्यार किया -बुरा मेरे यार किया देश को बिगाड़ा - किया रे कबाड़ा नोटों की खुश्बू से बुद्धि जो न बिगड़ती तो आज मेरे देश की हालत ऐसी न होती ओ जी ए जी -------- आते ही इलेक्शन हथेली खुजाए धन ही लुभाए- कुछ न सुझाए नेता को देखते ही दुम हम हिलाए फिर पाँच साल तक करें हाय हाय देखो जी नोटों ने कैसा सत्यानाश किया कसाई के हाथ हमने गौ माता सौंप दिया कमीने नेताओं से जो उलफत न होती तो आज मेरे देश की हालत ऐसी न होती ओ जी ए जी -------- देश की सुरक्षा पड़ी ख़तरे में अपनी ही ग़लती से हम बखेडे में रुपये की कीमत गिर गयी कितनी कीमत वोट की रही पर है उतनी प्यार को भुला के हम बन गये दुश्मन हमें लूट कर नेता भरा जेब में धन देश की हमने जो सोची होती तो आज मेरे देश की हालत ऐसी न होती ओ जी ए जी -------- कहीं कुछ ग़लत लगा क्या आपको .? नेताओं को नहीं खुद को भी ज़िम्मेदार समझें हम देश की अव्यवस्था के लि
Sunday, July 28, 2013
kuchh na seekha humne
भावुकता से भरा एक गीत लिखा था मेरे गुरु स्वर्गीय शैलेन्द्र जी ने फिल्म "अनाड़ी" के लिए - "सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी" धूर्त नेता सावधान हो गये और उन्होने अपने जीवन के गीत को किस तरह बदला देखिए इस पेरोडी में
कुछ न सीखा हमने बस सीखी होशियारी
इसीलिए ए जनता हर बाज़ी हमने ही मारी-----
हमने नसीहतें तुमको ही दी
जिसपे अमल न खुद ही कभी की;
तुमको सदा बहलाया - पटाया
कुर्सी पे हर बार क़ब्ज़ा की
कुर्सी ही तो सारी दुनिया में हमको प्यारी(2)
इसीलिए ए जनता हर बाज़ी हमने ही मारी-----
घर को तुम्हारे आग लगा दी
फिर दो झूठी आँसू बहा दी
रोटी अपनी आग में सेंकी
फिर भी तुमने हमको दुआ दी
उगे हथेली पे सरसों यह आदत है हमारी(2)
इसीलिए ए जनता हर बाज़ी हमने ही मारी-----
आज कुर्सी पर हम हैं क़ाबिज़
समझते हमको तुम ही मुहाफ़िज़
चढ़ता सूरज प्यारा सभी को
बतलाते हैं यह दस्तावीज़
यही सोच बन बैठे लाशों के हम व्यापारी(2)
इसीलिए ए जनता हर बाज़ी हमने ही मारी-----
kisiki bhavna ka
मित्रो देश का दुर्भाग्य यह रहा है कि आज नेता शब्द एक गाली सी लगने लगा है- जब कि एक ज़माना वह था जब नेताजी शब्द आदर और सम्मान का द्योतक हुआ करता था. आख़िर राजनीति इतनी घृणित कर्म क्यों बन गया है- देखिए इस पेरोडी में मैंने क्या कहा है - मूल गीत है फिल्म "अनाड़ी" का
" जीना इसीका नाम है"----
किसी की भावना का कर ले तू व्यापार
मिले जो कोई मौका पीठ पे छुरा तू मार
न सोच पाप पून्य करता जा तू अत्याचार
राजनीति इसीका नाम है ----------------
माना यह कि अपने में हुनर नहीं
लेकिन हम दगा देने में कम नहीं
नमकहलाली क्या है यह न याद रख
नमकहरामी करके सफलता को ले चख
बिना चाबी का खोल तू नसीब का "लॉक"
राजनीति इसीका नाम है ----------------
किसका तू कभी न करना ऐतबार
और न करना किसी से कभी प्यार
यह प्यार जो है वह बनाए कमज़ोर
बिना क़सूर के बनाता है साधु को चोर
तू बन जा ऐसा कि पाए न कोई छोर
राजनीति इसीका नाम है ----------------
jaayen to jayen kahan
मित्रों धीरे धीरे विश्वास होने लगा है कि पंजे वाले अब क्षितिज के उस पार जानेवाले है. उस समय पार्टी के भाड़े का टट्टू क्या गाएँगे सुनिए - मूल गीत है फिल्म "टेक्सी ड्राइवर" का "जाएँ तो जाएँ कहाँ"
जाएँ तो जाएँ कहाँ(2)
चेहरे से हटा जो नक़ाब
देगा वोट कौन यहाँ,
जाएँ तो जाएँ कहाँ(2)--
हमने जो मुल्क़ को जमके लूटा
सोचा न एक पल आगा या पीछा
हुआ बर्बाद दोनों जहान,
जाएँ तो जाएँ कहाँ(2)
कुत्ते की तरह दुम को हिलाया
इज़ात शर्म को बंधक बनाया
मेडम अब जाने कहाँ,
जाएँ तो जाएँ कहाँ(2)
एक दिन भी न देश का सोचा
कभी सुना न बोली जो जनता
समझते काश दिल की ज़ुबान,
जाएँ तो जाएँ कहाँ(2)
चिड़िया तो चुग गयी खेत सारा
रो रो कर दिल किसको पुकारा
पाप का फल भुगत यहाँ
जाएँ तो जाएँ कहाँ(2)
jaane kahan gayee
मित्रों पुराने अभिलेख बताते हैं कि इस देश में जो भे विदेश से आए, एक दिन यहाँ से सारे मूल्यवान पदार्थ ले कर चलते बने. तभी तो सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत के सारे पंख कतर दिए गये विदेशियों द्वारा और देशभक्ति का ढिंढोरा पीटनेवाले सरकर्ने इस मामले में कुछ किया ही नहीं अब तक. उल्टे एक और विदेशी को मौका दिया गया है अब. उसी बात पर एक पेरोडी प्रस्तुत है - मूल गीत है "दिल अपना और प्रीत पराई" का गीत "जाने कहाँ गयी"
जाने कहाँ गयी- जाने कहाँ गयी
सारा धन ले गयी ले गयी वह -------
देखते देखते क्या से क्या हो गया
देश का हाल यूँ कैसे ख़स्ता हुआ (2)
जाने कहाँ गयी- जाने कहाँ गयी
सारा धन ले गयी ले गयी वह -------
दोनों हाथों से वह लूटती ही रही
देख कर भी आँखें अपनी बंद रही (2)
जाने कहाँ गयी- जाने कहाँ गयी
सारा धन ले गयी ले गयी वह -------
अपने जो थे यहाँ, डोर उनसे रहे
भरके दामन में आग- मुफ़्त जलते रहे(2)
जाने कहाँ गयी- जाने कहाँ गयी
सारा धन ले गयी ले गयी वह -------
होश आया न क्यों- क्यों बहकते रहे
घर ना घाट मिला- धोबी के कुत्ते हुए(2)
जाने कहाँ गयी- जाने कहाँ गयी
सारा धन ले गयी ले गयी वह -------
वक़्त रहते अगर हट यह जाता परदा
जो है मेरा अभी- हाल वह न होता (2)
जाने कहाँ गयी- जाने कहाँ गयी
सारा धन ले गयी ले गयी वह -------
hai preet ka jahan akaal pada
मित्रों आपको याद होगा एक फिल्म आई थी मनोज कुमार की "पूरब और पश्चिम" इस फिल्म के मध्यम से उन्होने "जाई जगदीश हरे" आरती को जन जन तक पहुँचाया था और एक बहुत ही सुंदर गीत " है प्रीत जहाँ की रीत" के माध्यम से भारतीय संस्कृति का गौरव का बखान किया था. खेद है कि धर्म द्रोही प्रशासन के कारण आज देश की संस्कृति दुर्दशा ग्रस्त होने के मार्ग पर है अपनी ही भूमि में. उस पीड़ा को मैनें व्यक्त किया है इस कविता में - ध्यान चाहूँगा आपका
है प्रीत का जहाँ अकाल पड़ा
उस भूमि की बात मैं सोचता हूँ
यह अनहोनी हो गयी कैसे
यही सोच के मैं घबराता हूँ------
वह दिन भी कितने प्यारे थे
जब मिल कर सारे रहते थे
दादा- दादी और नाना- नानी
बच्चों को कहानी सुनाते थे
वह दिन अब सब ख्वाब हुए
जब स्वार्थ में हम सब डूब गये
मैं दिल ही दिल में रोता हूँ
यह अनहोनी हो गयी कैसे
यही सोच के मैं घबराता हूँ------
माँ-बाप को हम प्रभु मानते थे
उनकी बातों को गीता के वचन
सब परंपरा जब खाक हुई
बचपन से तो सब पालें टेंशन
आदर सम्मान और स्नेह प्यार
कम देख आज मैं पाता हूँ
यह अनहोनी हो गयी कैसे
यही सोच के मैं घबराता हूँ------
औरों के दुख गम में कभी
लोगों का कलेजा फटता था
जिसकी हैसियत हो जितनी
लोगों के काम वह आता था
वह बाग उजड़ गया प्यार का अब
फूलों को खार में पाता हूँ
यह अनहोनी हो गयी कैसे
यही सोच के मैं घबराता हूँ------
कण कण में देखते थे भगवन
भावुक हृदय हुआ करता था
जिससे जो भी उपकार मिला
वह पूजनीय हुआ करता था
अब के युग में भगवान है धन
इंसान खोजता रहता हूँ
यह अनहोनी हो गयी कैसे
यही सोच के मैं घबराता हूँ------
आओ रे क़सम खाएँ हम सब
हम बदल डालेंगे यह हालत
मतलब को रखेंगे दूर रे सब
हर दिल में जगाएँगे उलफत
लौटेंगे फिर से वह प्यारे दिन
यह सोच के खुश हो लेता हूँ
यह अनहोनी हो गयी कैसे
यही सोच के मैं घबराता हूँ------
ab kahan jayen hum
एक फिल्म आई थी "उजाला" उसमें एक बहुत ही बढ़िया गीत था "अब कहाँ जाएँ हम- तू बता ए ज़मीन" . उसी पर एक गीत प्रस्तुत है आज देश की हालत पर
अब कहाँ जाएँ हम- बतला भारत माता
जो लुटेरे देश के साथ उनके सत्ता
"जोकर" हे जहाँ रोब दिखाने लगे
पीट तो जाएगा ही "इक्के"का जो पत्ता;
अब कहाँ जाएँ हम- बतला भारत माता-------
कहने को स्वतन्त्र हुए, पर दासता अब भी है
पद लेहन की तो यहाँ प्रतियोगिता अब भी है
देश भक्तों की तो हो रही दुर्दशा
जो लुटेरे देश के साथ उनके सत्ता--------
हिन्दी की समर्थन में विरोध की जो आवाज़ें
उसके ही सर पर तो लाठियाँ पुलिस भान्जे
राजभाषा नीति बस तो है दिखावा
जो लुटेरे देश के साथ उनके सत्ता-------
जनता के धन को यह "बपौती" माने अपनी
जब मतलब आन पड़े बहू - बेटी बेचें अपनी लोक तंत्र यहाँ बन गया छलावा
जो लुटेरे देश के साथ उनके सत्ता------
हर रोज़ नये घपले- नित नये हैं घोटाले
पर दावा है इनका हैं वह दूध के रे धूले
वीरों की यह भूमि बन गयी क्या बंध्या
जो लुटेरे देश के साथ उनके सत्ता------
कब तक यूँ सहोगे कहो, इन दुराचारियों को
औकात दिखा दो अब इन कदाचारियों को
फ़र्ज़ भूलो नहीं- जाग री जनता
जो लुटेरे देश के साथ उनके सत्ता-------
तू भारत की संतान-हिम्मत है तेरी शान
तू टेक न रे घुटने - माताका न कर अपमान
राजा तू देश का- शक्ति अपनी दिखा
जो लुटेरे देश के साथ उनके सत्ता---------m
tumse ghatiya
मामा श्री की स्तुति
(मूल गीत- फिल्म "कामचोर" का- इससे बेहतर और कौन फिल्म होगी मामा के लिए )
तुमसे घटिया दुनिया में न देखा कोई
और मामाजी आज यह बात साफ हो गयी--
क्या खोटी नीयत है तेरी
करता है बस जी हुज़ूरी
शिक्षा दीक्षा को आग लगाकर
करे परदेसन की तू चाकरी
तू है मेरा मामा सोच कर मारा शर्म से
मैं देख ले, आज यह बात साफ हो गयी--,
ऑस्ट्रेलिया ने आतंकी को जो पकड़ा
तूने क्या क्या लेक्चर था रे झाड़ा
मिड डे मिल खा बच्चे मरे जो
लकवा क्या तेरे मुख को था मारा
तेरे जैसा पापी दूजा होगा न कोई और रे
आज यह बात साफ हो गयी --------
उत्तराखंड में जो कुछ था घट गया
जनता से तू भीख माँगने लग गया
देश द्रोही बदमाशों के खातिर तो तूने
ख़ज़ाने का मुँह कैसे खोल दिया
साक्षर मूर्ख तुझ जैसा देखा न और
आज यह बात साफ हो गयी ----
**नोट- ध्यान दें- यह पेरोडी परम आदरणीय 108 श्री सुप्रीम कोर्ट मुदगल जी के आदेशानुसार प्रस्तुत की गयी है
aayaa chunaav to
अपना वादा निभाते हुए चुनाव पर एक पेरोडी प्रस्तुत करता हूँ- मूल गीत है फिल्म "प्रोफ़ेसर" का "खुली पलक में झूठा गुस्सा"
आया चुनाव तो वादे हज़ारों
होते न जो पूरे
हाय कॉंग्रेस पार्टी- इनकी राजनीति
होंठों पे मुस्कान की बिजली
दिल हैं ज़हर भरे
हाय कॉंग्रेस पार्टी- इनकी राजनीति-------1
जिस दिन से मिली आज़ादी
अपनी ही बिसात बिछा दी
चाहे नतीजा जो भी निकले
हर हाल में इनकी ही बाज़ी
हाँफ हाँफ कर मरे नहीं हम
सुधरी इनकी ज़िंदगी
हाय कॉंग्रेस पार्टी- इनकी राजनीति---2
हर बार दिखाए सपने
कहते रहे हम तेरे अपने
पर सच तो यह है भाई
हर बार दिए हैं सदमे
हमरे सर परे चढ़ के इन्होने
कद अपनी बढ़ा दी
हाय कॉंग्रेस पार्टी- इनकी राजनीति------3
बेंकों को किया सरकारी
और खूब किया केलेंकारी
लोन मेला- क़र्ज़ की माफी
कर बहुत बहादुरी मारी
अर्थ-शास्त्री बना व्यर्थ-शास्त्री
बेंकों को कंगाली दी
हाय कॉंग्रेस पार्टी- इनकी राजनीति-----4
कहते हैं सब है बराबर
पर करते हैं लोगों में अंतर
गौ माता से कोसों दूरी
अल्पसंख्यकों के धो लें यह पयर
वोट के लिए सुरक्षा देश की
ख़तरे में डाल दी
हाय कॉंग्रेस पार्टी- इनकी राजनीति----5
नारी का करे यह अपमान
और दुर्जनों का करें गुण गान
दूध दही न इनको भाए
फारेन लीकर से बढ़े शान
भाषा और संस्कारों का इन्होने
खाट खड़ी ही कर दी
हाय कॉंग्रेस पार्टी- इनकी राजनीति----6
क्या इनके अवगुण गाएँ
दास्तानें कितनी सुनाएँ
कोयलेको जितना भी घिस लें
सफेदी कहाँ से ले आएँ
जान लो अब इन मक्कारों को
बचाओ अपनी आज़ादी
हाय कॉंग्रेस पार्टी- इनकी राजनीति--------7
mera yeh man kare pukar
एक बहुत ही रोमांटिक गीत बना था "दिल का भँवर करे पुकार" देव और नूतन की जोड़ी- गोल्डी का निर्देशन- हसरत के शब्द - एस डी का संगीत- रफ़ी की आवाज़ सब कुछ लाजवाब. पर जिन्हे इंसान से नहीं सिर्फ़ कुर्सी से प्यार है उनके गाये गीत का क्या हाल होगा ज़रा देखिए इस पेरोडी में
मेरा यह मन करे पुकार
सब का हक़ छिनो- सब का हक़ छिनो रे---
मुल्क़ अपनी "बपौती"
अपने पूरखों की "थाती"
लूट लूट हम तो खाएँगे
बोटी सारे नोच कर
सूखी हड्डी फेंक कर
जनता को चूना लगाएँगे
कोई क्या कर लेगा रे
सब का हक़ छिनो रे---
12 की थाली पेट भरे
बच्चा ज़हर खा मरे
हज़ारों की थाली हमारी
मुख जो तुमने खोला
कभी कुछ भी जो बोला
लाठी- गोली की है तय्यारी
बेहतर चूप रहना रे
सब का हक़ छिनो रे---
जन के लिए जनता द्वारा
जनता की ऐसी - तैसी
होती जो है वह डेमोक्रेसी
हम नेता तुम जनता
सब नसीब का लिखा
भाग में तुम्हारे है बेक़सि
सब तुम्हे सहना है रे
सब का हक़ छिनो रे---
yeh bharat
शैलेंद्र जी ने एक गीत लिखा था "यहूदी" के लिए " यह दुनिया यह दुनिया हाय हमारी यह दुनिया "
खून में जोश भर देता था- और रगों में आग - उसी के आधार पर एक गीत देश की दुरवस्था पर
यह भारत यह भारत हाय हमारा यह भारत
शैतानों के बस में है- पपियों को ही यश है
यह भारत यह भारत-------
बच्चों को परोसा जाता ज़हरीला भोजन
अय्याशी में डूबे नेता का तन मन (2)
बच्चे तो यहाँ पे बिकते चंद रुपयों में
मीडिया करती है नेताओं के कीर्तन (2)
यह भारत यह भारत हाय हमारा यह भारत
हुई दुर्गति कैसी है संत के गले में रस्सी है
यह भारत यह भारत---------
भूखी है जनता दो हाथों देश को यह लूटे
पाँच रुपये में खाना मिले कहते हैं झूठे
दलाली करते है यह हर सौदे में
उस पर दावा करते हैं कि यह हैं सच्चे
यह भारत यह भारत हाय हमारा यह भारत
न्यायधर्म पर है पहरा- सत्य छुपाया है चेहरा
यह भारत यह भारत --------
ज़ूल्म की सारी हद तो अब है टूट चुकी
एक एक शमा आस की अब है बुझ चुकी
खून को अपना बन तेल राग को ही बाती
दूर अंधेरा करने को राह कोई न है बाकी
यह भारत यह भारत हाय हमारा यह भारत
रो-रो माता पुकारती है क्या सुनाई नहीं देती है
यह भारत यह भारत ---------
humne zafa na seekhe
एक और दर्द भरा गीत सुना था फिल्म "ज़िंदगी" का "हमने ज़फ़ा न सीखी - उनको वफ़ा न आई " चलिए उसी पर हाथ आजमाएँ
हमने ज़फ़ा न सीखी- उनको वफ़ा न आई
हर बार उन्हे जिताया- गर्दन खुद ही कटाई-
अपने ही वोट के हाथों बर्बाद हो गये हम
किससे करें शिकायत अब किस की दें दुहाई--
हमको तो बाप बोला और पकड़े पैर भी वह
"गर्दभ" बना दिया है चुनाव ने हमको भाई ---
खाते रहे हैं धोखा क़िस्मत पे हम है रोते
पूछो कभी यह खुदसे क्यों अक्ल है न आई--
नक़ली फूलों में खुशबू बोलों कहाँ से आए
खुद मांझी बनके तुमने नैय्या को है डुबोई--
अब भी है वक़्त जागो- तुम मुल्क़को बचा लो
साधु न जानो उसको- जो है यहाँ कसाई----
हसरत जयपुरी साहब ने एक ज़बरदस्त गीत लिखा था फिल्म "कन्यादान" के लिए - "मेरी ज़िंदगी में आते तो कुच्छ और बात होती"
उसे थोड़ा सा बदल दिया मैंने देश की राजनीति को देख कर- गौर कीजिए
तुम पैदा न जो होते
तो कुछ और बात होती (2)
न ही देश यूँ बिगड़ता
जनता न यूँ तो रोती--------
कई बार मिल चुके हम
जब जब चुनाव आया
कुर्सी के मिलते ही तो
हमें अंगूठा दिखाया
कोई "द्रोण" मिल जो जाता
तो कुछ और बात होती(2)
तुम्हे आईना दिखाता
तो कुछ और बात होती(2)------
यह दुआ करूँ मैं निश-दिन
तुझे ऐसी मौत आए
तू तड़पता ही रहे पर
तेरी जान जा न पाए
तू जो भूत बन ही जाता
तो कुछ और बात होती(2)
बोतल में क़ैद करता
तो कुछ और बात होती(2)------
kafan men watan ko
आज सुबह "रंगोली" में सुना फिल्म "प्रिन्स" का गीत "बदनपे सितारें लपेटे हुए " सोचा इसपर हो जाए एक पेरोडी- पढ़िए, जिन्हे पसंद हो
कफ़न में वतन को लपेटे हुए
ओ शैतान-ए-आज़म किधर जा रहे हो
ज़रा पास आओ मुँह काला कराओ (2) -------1
वतन जब न होगा तो रे नामुराद
कहाँ जा के यह सर छुपाओगे तुम
जो पैसे रखें हैं विदेशों में ले
उन्ही को कहो क्या चबाओगे तुम------------ 2
जो खून चूसते रहते थे रात दिन
ए ख़टमल बता कैसे बिसरा दिया
ग़रीबों को झोपड़ जला कर तूने
हवेली को अपनी तो रोशन किया--------------3
खुदा का भी न ख़ौफ़ था रे तुझे
तू खुद को ही कहता रहा रे खुदा
है जिसने बनाई सारी क़ायनात
बनाया था तुझको क्या हमसे जुदा----------4
है खिदमत में बरकत न जाना रे तू
तेरे दिल में वहशत का डेरा जो था
शमा एक उलफत का जला जो लेता
तू शोहरत पे अपनी तो खुश ही होता----------5
तेरे ज़ुल्म की इंतेहा जो हुई
सज़ा लाजमी देनी तुझको ही था
तुझे नाज़ था कुर्सी पे रे अहमक
वही आज तुझसे हुई है जुदा---------------6
तू गुमनामी में हो जा अब लापता
यही सबसे वाजिब है तेरी सज़ा
जो मनहूस चेहरा तेरा न दिखे
तभी लेंगे सब ज़िंदगी का मज़ा-------------7
ae neta beimaanaa
फिल्म आरज़ू का गीत याद है न " ए नरगिसे मस्ताना" कैसा लगता है आपको - इसे बना दें पेरोडी - देखिए पसंद आता है या नहीं
ए नेता बेईमाना- बस इतनी शिकायत है(2)
हर बार लगाया चूना
बस इतनी शिकायत है(2)--------
जब गरज पड़ी तब आए,
बड़े बड़े वादे तो कर गये/
हम सूख के ढाँचा बन गये,
तुम तोंद अपनी बढ़ा गये/
हम सूख के ढाँचा बन गये,
तुम तोंद अपनी बढ़ा गये/
हाय-- सुख चैन हमारा छीना
बस इतनी शिकायत है(2)--------
हम देश को माता कहते,
तुम सौदा हो इसके करते /
छोटे व्यापारी दीवालिए,
एम एन सी को तुम हो बुलाते/
छोटे व्यापारी दीवालिए,
एम एन सी को तुम हो बुलाते/
हाय- पापियों का बने सरगना
बस इतनी शिकायत है(2)--------
सच्चाई के राह चले जो,
राहों में उसके हैं रोड़े/
देशभक्तों की हालत पतली,
आतंकी हैं चढ़ते घोड़े /
देशभक्तों की हालत पतली,
आतंकी हैं चढ़ते घोड़े /
हाय- मुश्किल है कर दिया जीना
बस इतनी शिकायत है(2)--------
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