Monday, May 5, 2014



ज़िंदगी को सही राह दिखानेवाले कुछ पोस्ट डाले - आपको हंसाने के लिए भी कुछ पोस्ट डाले - लेकिन आप लोग तो अपनी मांद से निकलते ही नहीं- चलिए एक कोशिश और करते हैं..

पिछले हफ्ते एक संगीतकार आए थे मुझसे कुछ ग़ज़ल लिखवाने अपने एलबम के लिए - उनकी ख़ास फरमाइश थी कि शराब पर एक या दो ग़ज़ल मैं लिखूं ज़रूर- तो उन्ही ग़ज़लों में से एक आपकी खिदमत में पेश करता हूँ - देखें शायद क़िस्मत करबट बदल डाले 

क्यों है बदनाम ज़माने में कहो मय यारों
उनकी नज़रों मे - नशा कम तो नहीं है यारों //

हाथ में लेता कोई जाम - जब खुश होता दिल
उनसे मिलने से बड़ी कोई खुशी तो न है यारों //

गम का मारा हो जब कोई - तब है साथ शराब
जब हैं दूर हमसे वह- गम कम तो नहीं है यारों //

लोग कहते हैं कि तन्हाई की दवा है यह शराब
वह तसब्बुर में हों तो तन्हाई कहाँ है यारों //

प्यार जिस दिल ने किया मदहोश सदा रहता है
बंद बोतल में कहाँ मस्ती कहो है तुम यारों //

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