मित्रों- आपको याद होगा एक गीत 'चौदहवीं का चाँद हो या आफताब हो ' आज भी लोकप्रिय है- किसी की सुंदरता का बयान था उस में. आज कल तो सुंदरता की तारीफ में ऐसे गीत लिखनेवाले ही न रहे . तो मैंने सोचा कि चलो असभ्यता- अशलीनता और कमीनेपन की सारी हादे तोड़ने वाले निर्लज और वर्वर नेताओं पर एक पेरोडी लिख ली जाए उसी गीत के आधार पर दिल को हल्का करने के लिए - देखिए शायद आपको भी अच्छा लगे
आँत हो शैतान की - ज़हरीली शराब हो
जो भी हो तुम खुद की क़सम तुम तेज़ाब हो ;
आँत हो शैतान की-------
करते हो ऐसी हरकतें- शरमा जाएँगे जिन्न
भरता नहें है पेट - सभी के हक़ों को छिन
चाहे न देखें जिसको कोई तुम वह ख्वाब हो ;
आँत हो शैतान की-------
करते हो सेंध मारी- बन करके मेहमान
किन किन तरीकों से जाने करते हो परेशान
ज़िंडों का गोश्त नोचे जो रे- तुम वही काग हो
आँत हो शैतान की-----
करते हो इतने ज़ुल्म लेकिन सभी है चूप
कहते खिली है चाँदनी - सर पे कड़ी है धूप
जिसका कटा न माँगे पानी - तुम वह नाग हो
आँत हो शैतान की-----------
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