सबसे पहले मैं समूह के संरक्षक हमारे बड़े भैया श्री महेंद्र सक्सेना जी से क्षमा माँगना चाहूँगा. उन्होने आधुनिक 'जयचंद' पर एक कविता लिखने के लिए मुझे कहा था लेकिन मुझसे देर हो गयी- खैर बड़े भैया बड़े ही उदार और दरियादिल इंसान हैं- मैं उनका ध्यान चाहूँगा इस कविता पर - जो फिल्म हक़ीक़त के गीत 'कर चले हम फिदा' पर आधारित पेरोडी है
कर चले देशको हम नीलाम अहमकों
हम तो हैं ही जयचंद की संतान अहमकों---------
देश तो हो गया आज़ाद पर जनता गुलाम
गोरे साहबों की जगह पाते हैं हम सलाम
हम पनपते रहे - लोग मरते रहे
चैन की बंसी हम तो बजाते रहे
यही तो है तुम्हारा नसीब रे अहमको
हम तो हैं ही जयचंद की संतान अहमकों---------
चाटुकारों की सेना खड़ी हम ने की
जो हमारे ही गुण गान करते रहे
अपने कुनवे को ए 1 कहते रहे
औ शहीदों का अपमान करते रहे
करते रहना हमारा वंदन रे अहमकों
हम तो हैं ही जयचंद की संतान अहमकों---------
है दलाली खाई है सभी डील में
फिर भी दिल पे कोई बोझ रखा नहीं
सारे धन को रखा है स्विस बैंक में
उसकी सोचे देश का कभी सोचा नहीं
तुम फटेहाल ग़रीब क्या यह जानो अहमकों
हम तो हैं ही जयचंद की संतान अहमकों---------
लोगों में डाला फुट और लड़ायाआ उन्हे
हम तमाशा यह बरसोंसे रहे देखते
तुम में अक्ल कहाँ यह बताओ ज़रा
छोटी सी बात जो यह तुम कभी समझते
तुम्हरी मौत में अपना जीवन है अहमकों
हम तो हैं ही जयचंद की संतान अहमकों------
No comments:
Post a Comment