Saturday, August 10, 2013




लंबे एक अरसे के बाद सजी थी दोस्तों की प्यारी महफ़िल;
प्रेम से सब बतिया रहे थे जब मिल रहे थे दिलों से दिल/
कहकहों की गूँज हो रही थी वहाँ - धमाके थे वहाँ ठहाकों के ;
हँसी का फव्वारे छूट रहे थे नाम न थे गम और आहों के/
एक को तब मज़ाक़ सूझा - सवाल यूँ उसने दाग दिया ;
डरते न हों बीवी से जो उठाए हाथ ऐसा उसने कह दिया /
सब के हाथ उठ गये फ़ौरन - चूप बैठा मैं ही अकेला था;
मानो सारे बगुले थे वह - एक मैं ही कौव्वा काला था /
एक ने तब लगाई घुड़की - कहा डूबके क्यों मरता नहीं;
बीवी से डरता है तू यह कहते आई ज़रा भी शर्म नहीं /
कंधों को उचका के कहा मैंने तब सारे तुम बेवक़ूफ़ हो;
ज़रा सी बात पे इतना हल्ला, क्या नहीं तुम अहमक हो/
बीवी अपनी खुद की तो है- कहो अब क्यों मैं डरूँ नहीं ;
गैर की बीवी से डर जाऊं, मैं तो कोई मन्नू मामा नहीं/

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