एक उद्गार उन बहरे लोगों के लिए जो कहते हैं की धर्म को राजनीति से नहीं जोड़ना चाहिए.. उदयन सुपकर दादा
कर्म से धर्म को जोड़ के देख लो - कितना नर्म होगा जीवन
धर्म हीन कर्म शर्म का कारण -आस का न हो जिसमें किरण //
शासक जब बन जाए अधर्मी - प्रजा जनों का होता शोषण
गूंगा बेहरा राज करे जब - निश्चित न्याय का होगा हनन //
कोई उड़ाए छप्पन भोग - तो कोई खाए अनुदान का अन्न
कोई मरे यहाँ कर के बोझ से -कोई खन पीता राक्षस बन//
चोर मंडली को मस्ती सारी - क़िस्मत पे यहाँ रोए सज्जन
आवाज़ जिसने यहाँ उठाई -उसे मुफ़्त में मिले रे कफ़न //
इनको अब तू पहचान ले भाई - अब तो होगा इनका पतन
दिल में नेकी जगा ज़रा तू -देश बदल डाल कहता 'कुन्दन'//