Friday, September 20, 2013

सारे तो नही लेकिन कुछ मित्र ऐसे हैं ज़रूर जो मेरी लिखी पेरोडी पसंद करते हैं- और जिन्हे पसंद है उनके लिए आज पेश है एक पेरोडी जो देश की राजनीतिक दुरवस्था में आम जनता के दोष पर एक प्रहार है - मूल गीत एक ज़बरदस्त हिट गीत फिल्म " उजाला " का "झूमता मौसम मस्त महीना" हसरत जी का लिखा हुआ - 

वोट का मौसम मुश्किल जीना 
सर्दी में भी छूटे पसीना 
नेता हमरा चैन है छीना 
हाय रे राजनीति जान ले गयी ---

वादे पे उसके करके भरोसा
अपनी गर्दन खुद ही तू फांसा
कौन तुझे अब देगा दिलाशा
हाय रे आँख क्यों भर आई ------

लंबी सड़क- यह झंडे पोस्टर
चुन्धिया गयी है मेरी नज़र
इन सब की तू बात न कर
डोला ईमान तेरा बोतल पर

जैसे ही उसने नोट निकाले
अपना वोट किया उसके हवाले
अब चाहे तू जितना भी रो ले
हाय रे आँख क्यों भर आई ------

मैं भी बड़ा था नादान
उसकी नीयत से अंजान
जाना उसे साधु जो शैतान
क्यों नहीं पाया रे पहचान

देश की तूने कब सोचा क्या
अपने ऩफा के पीछे पड़ा था
अब के न चुके कोई भी मौका
रखना याद तू मेरे भाई ----------
एक और पेरोडी "नेता को नसीहत" मूल गीत फिल्म "सावन की घटा " से "ज़ुल्फ़ो को हटा ले चेहरे से "

तू खुद को हटा ले पॉलिटिक्स से - जनता को चैन से जीने दे
तू जा कर विदेश में ऐश ही कर - इस देश को ढंगसे चलने दे 
तू खुद को हटा ले पॉलिटिक्स से-------

हो जो जनता को पता तेरी नीयत है क्या 
यह बता दे रे हमें तुझे मिलती कुर्सी क्या 
कुर्सी मिलते ही तू पागल हाथी बना
खुद को मालिक और हम को रय्यत माना 
अब यह भ्रम जाल तो टूटने दे ; तू खुद को हटा ले पॉलिटिक्स से-------

और नाराज़ न कर हमें तू सुन रे नेता
बाँध के बोरिया बिस्तर चला क्यों तू न जाता
हम नहा लें रे गंगा जो तू दफ़ा हो जाए
जाए ऐसे की वापस न फिर से आए
यह अरमान को पूरा तो होने दे ; तू खुद को हटा ले पॉलिटिक्स से------- by Sri Udayan Supkar
फिल्म ससुराल का एक गीत था 

एक सवाल मैं करूँ एक सवाल तुम करो 
हर सवाल का सवाल ही जवाब हो 

(आज के सन्दर्भ में आगे का गीत ऐसा है )

लोग तो कहते अपने देश में जन तंत्र है जारी 
फिर क्यों बोलो एक परिवार सारे देश पे भारी

इंसान बन कर देश में जब सब भेड़ ही कहलाए
फिर क्यों बोलो कोई देश में "युवराज" क्यों न होये

एक सवाल मैं करूँ एक सवाल तुम करो
हर सवाल का सवाल ही जवाब हो --------------

बिना धंधे के कोई यहाँ पर करोड़ों से क्यों खेले
मेहनतकश क्यों टेक्स चुका कर सारे दुख ही झेले

रीढ़ की हड्डी न हो जैसे कहो कोई यहाँ क्यों रेंगे
नेता को जब बाप कहोगे क्यों न दिखलाए ठेंगे

एक सवाल मैं करूँ एक सवाल तुम करो
हर सवाल का सवाल ही जवाब हो --------------

आप में से कोई इसे आगे बढ़ाना चाहेंगे ?
कुछ देर पहले देखा टी वी पर की गोरी मेम आज जा रही है विदेश में इलाज करवाने - एक गीत याद आ गया 

चली कौन सी देश गुज़रिया तू सज धज के 

चलिए उसे ऐसे गाते हैं अब 

चली कौन सी देश ओ गोरी मेम तू यूँ संवर के 
जाती हूँ मैं उस देश, जहाँ रखा काला धन भर के ----------

छलके तेरे चाटुकारों की आखियाँ
लिखना जा कर चिट्ठी पतिया
कुटिल और मनहूस हो -----
कुटिल और मनहूस मरेंगे रत दिन रो के
जाती हूँ मैं उस देश, जहाँ रखा काला धन भर के -----------

कितना खाने से पेट यह भरेगा
इतने धन से भला क्या होगा
आंते हैं शैतान की हो ---
आंते हैं शैतान की भरे न सब कुछ खा के
जाती हूँ मैं उस देश, जहाँ रखा काला धन भर के -----------
अभी अभी लिखी है यह कविता 

एम्स में करे आतंकी मस्ती - साधु हवालात में सड़ते हैं
गौ माता पर कसाई की क़तार - और कुत्ते गोश्त उड़ाते हैं---

देश में जो बहाए पसीना - उस पर है महँगाई की मार
ग़लत लोग ही इस देशमें जब तब है ईद * मनातें है----

क़ानून के डंडे यहाँ पर है तो सही पर ईमानदार के लिए 
क़ानून को जो धत्ता बताए - हाय अब वही देश को चलाते हैं---

सौ पचास की जो हो रक़म सब घूस खोरी उसको कहते हैं
लेते ना डकार खा कर करोड़ों जो यह जनसेवक कहलाते हैं ---

मत-दान है नेक काम बड़ा सरकार यह बार बार कहती है
मत ले कर भोली जनता का पर सारे पाप कर सब जाते हैं.....
कुछ पंक्तियाँ यह भी(मेरा जूता है जापानी के तर्ज़ पर)

यहाँ जनता है दीवानी - 
और मैं अकेली सयानी
ऐसे करतब मैं दिखाऊँ
आए याद सबको नानी-----
रच के साज़िश आई हूँ मैं
छोड़ के अपना देश घर (2)
देखो कैसे मूरख हैं यह
फूल बिछाए क़दमों पर (2)
सास पति की कहानी
अब तो हो गयी पुरानी
ऐसे करतब मैं दिखाऊँ
आए याद सबको नानी-----
सरकारी पद मैं न चाहूं
काम चले तो पर्दे से (2)
अपना उल्लू कर लूँ सीधा
मिलेगा क्या ओहदे से (2)
तेरे मसके से रे जानी
बढ़ती है अपनी शैतानी
ऐसे करतब मैं दिखाऊँ
आए याद सबको नानी-----
मित्रों आपको प्यासा का गीत याद है न - हम आपकी आँखों में इस दिल को बसा दें तो - 
आज उसी धून पर वोटर और कमीने नेता को ले कर एक गीत बनाते हैं चलिए

- हम आपको गद्दी से इस बार हटा दें तो 
- मत दाता की सूची से हम तुमको हटा दें तो 

- हम जाएँगे घर घर पर लोगों को जगाने तो 
- हम नोटों की खुश्बू से जो होश उड़ा दें तो 

- कारनामे जो काले किए हम उनको उछालें तो 
- हम लोगों की कानों में रूईयाँ जो ठूंस दें तो

- छापेंगे जो लेख बहुत और गाने बनाएँ तो
- लोगों के दिलों में हम जो ख़ौफ़ जगा दें तो

- धरने और रेल्लियाँ सड़कों पे निकालें तो
- पुलिस के गोली डंडे हम तुम पे चलादें तो

- ई वी एम मशीनों से हम तुम को हरा दें तो
- हम हैं ही कमीने रे गड़बड़ जो करा दें तो

- भगवान से डर पापी आ जाएँगे यहाँ वह तो
- हम मुल्क को यह सारा "सेक्युलर" बना दें तो

कहिए ठीक लगा क्या ?
एक विक्षुवध दिल की आवाज़ और एक निर्लज नेता का जवाब
(मूल स्रोत - तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ - फिल्म धूल का फूल)

तुझे सत्ता से हटाना मैं चाहता हूँ
सुधर जाए देश मेरा यही चाहता हूँ------

पंगा मुझसे भला क्यों लेते हो 
बिल्ली बने वैष्णव यह क्या चाहते हो------

कच्चा चिट्ठा सबके आगे खोल कर
जनमत जगाऊँगा घर घर मैं जा कर
सोई जनता को मैं नींद से जगा कर(2)
मुखौटा तेरा मैं नोचना चाहता हूँ
सुधर जाए देश मेरा यही चाहता हूँ---------

हो न सीधी जो मैं कुत्ते की दुम हूँ
अपने ही स्वार्थ में मैं तो रे गुम हूँ
झोंपड़ी तू तो मैं वी आइ पी रूम हूँ(2)
हथेली पे सरसों क्यों उगाना चाहते हो
बिल्ली बने वैष्णव यह क्या चाहते हो------

भोली बन जनता सदा यूँ न रहेगी
तेरे ज़ुल्म की आँधी कब तक बहेगी
शमा सच्चाई की तो जलती रहेगी (2)
सोज़ बग़ावत की लगाना मैं चाहता हू
सुधर जाए देश मेरा यही चाहता हूँ---------

बासी कढ़ी में तू कैसे उबाल लाएगा
घुट घुट के एक दिन तू पागल बनेगा
मुझको हटाएगा तो यह कमाल होगा (2)
ख्वाब खुली आँख देखना चाहते हो
बिल्ली बने वैष्णव यह क्या चाहते हो------

मगरूर का सदा नीचा होता रे सर
सूरज भी डूबता है एक बार चढ़ कर
सैलाब आएगा रे बाँध को तोड़ कर(2)
डूबेगा तू मैं देखना यह चाहता हूँ
सुधर जाए देश मेरा यही चाहता हूँ---------
इतने सालों में तो भाई हमने यह देखा कि देश में पीड़ित को और पीड़ा पहुँचाना और पीड़ा देनेवालों को राहत देना ही क़ानून का कर्तव्य बन चुका है - सुनी सुनाई बात के अलावा मैंने खुद भुगता भी है - तो क़ानून की शान में प्रस्तुत है एक पेरोडी ( मूल गीत फिल्म अंदाज़ का - ज़िंदगी एक सफ़र है सुहाना )

क़ानून का यह खेल पुराना 
शरीफों को बदमाश बतलाना ---

पकड़ा जाए जब कोई पापी 
लोग मचाते हैं शोर काफ़ी 
वकील कहे इसको है बचाना
शरीफों को बदमाश बतलाना ---

जो होते हैं सीधे बंदे
पड़े उनपे क़ानूनी फंदे
पड़ता है हलाल उनको होना
शरीफों को बदमाश बतलाना ---

खुदसे हटाने को सबकी नज़र
वक़्त बिताते हैं साज़िश कर
काम इनका है मौज उड़ाना
शरीफों को बदमाश बतलाना ---

फिरंगियों के बनाए क़ानून
लग तो चुका है उसपे घून
इसे कब्र में है अब सुलाना
शरीफों को इंसाफ़ है दिलाना ------

कहाँ है इंसाफ़ और कहाँ क़ानून
जिसे देखो बजाये है अपनी धून
है इनको सबक़ सिखलाना
शरीफों को इंसाफ़ है दिलाना ------
कहा जाता है सही खान पान - रहन सहन और और नियमित दिनचर्या से ही व्यक्ति का तन और मन स्वस्थ रहता है- उसी प्रकार आदर्श राष्ट्र पुरुष - कुशल प्रशासक- मेहनती जनता और सही ताल मेल ही एक स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण करता है - दुर्भाग्य से हमारे इन सभी चीज़ों का घोर अभाव है - नराधम राजनीतिक व्यापारी- भ्रष्ट प्रशासक- आलसी जनता और बिखरता समाज ने देश को बर्बाद कर दिया है - इस देश में कोई अगर मज़े में है तो वह है ग़लत नजेता और उनका साथदेनेवाले आतंकी इनमें तालमेल पर है यह पेरोडी - मूल गीत है फिल्म "एक फूल दो माली" का "ओ नन्हे से फरिश्ते"

ओ मौत के फरिश्ते - इतना हमें बता दे
किस किस से तेरे रिश्ते ,ओ मौत के फरिश्ते ---
बड़ा कमीना है रे तू -----

जाने तू आया है क्यों - धरती का बोझ बन कर
शैतानी में रहा है - दिल तेरा यह उलझ कर
तुझ को जो दे बढ़ावा - बतलाता न तू क्यों है
ओ मौत के फरिश्ते -----

बदबू भरा तू कीड़ा किसी और ही ज़मीन का (2)
किसने यहाँ बुलाया - मेहमान गाई तू किसका
शह देता है जो तुझको बतलाता न तू क्यों है
ओ मौत के फरिश्ते -----

बम के धमाके कराए - कभी ट्रेन - पूल उड़ाए
पकड़ा गया कभी जो दामाद बन तू जाए
तेरे ससुर कितने - बतलाता न तू क्यों है
ओ मौत के फरिश्ते -----

करे पैरवी तेरी जो इस देश में है काफ़ी
गद्दारी का नशा तू - पिलाया रे बनके साक़ी
मदहोश जो यहाँ पर - बतलाता न तू क्यों है
ओ मौत के फरिश्ते -----
कल रात टी वी के समाचारों में देखा कि उट-पटांग असार ( U P A ) सरकार ने हमारे ही पैसों में से 10000 करोड़ खर्च करके टॅबलेट और मोबाइल मुफ़्त में बाँटने का निर्णय किया है ताकि इस तरह घूस दे कर वोट खरीदा जा सके - आख़िर किसने यह अधिकार दे दिया सरकार को ? बिना भोजन के कोई मर रहा है , इलाज के बिना कोई दम तोड़ रहा है , पेट की आग बुझाने को माँ अपने जिगर के टुकड़े को बेच रही है जिस देश में - वहाँ यह सब एक मज़ाक़ और कमीना-पन नहीं तो और क्या है ?

सरकार देश को एक भीख-मँगों का देश बनाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम कर रही है ताकि हर कोई यह समझे कि उनकी जान का मालिक देश की सरकार ही है - इसी पर प्रस्तुत है एक और पेरोडी (मूल गीत सजन रे झूठ मत बोलो- फिल्म तीसरी क़सम)

बनाएँ तुमको भिखारी
यह देखा हमने सपना है
मोबाइल टॅबलेट बाँटेंगे
वोट जो हासिल करना है , बनाएँ तुमको भिखारी-------1

कोई भूखा मरे हमें क्या
बेटे को माँ बेचे हमें क्या
किसी भी कीमत पे हमको(2)
सत्ता हासिल ही करना है , बनाएँ तुमको भिखारी-------2

दिखाएँ ठेंगा क़ानून को
ठंडा करें तेरे जुनून को
साम दाम दंड भेद सारे (2)
तो हमको आज़माना है , बनाएँ तुमको भिखारी-------3

चाहे चीखो या चिल्लाओ
पोस्ट फेसबूक पे लगवाओ
नींद में सोई जो जनता (2)
हमेशा इसको सोना है , बनाएँ तुमको भिखारी-------4

तुम्हारे घर को लूटेंगे
कुछ टुकड़े तुम पे फेंकेंगे
भिखारी देश बन जाए (2)
हमें तो ऐश करना है , बनाएँ तुमको भिखारी------- 5

है अहमक देश की जनता
बताया है सदा इसे धत्ता
इन्ही के खून चूस चूस के (2)
वजन अपना बढ़ाना है , बनाएँ तुमको भिखारी------- 6

न जाने कितने आए - गये
सभी को तो हमने टपकाए
देश के कर दिए जो टुकड़े(2)
असंभव इसको जोड़ना है , बनाएँ तुमको भिखारी------- 7

हमारा जवाब

चाहे मगरूर हो कितना
एक दिन उसको मिटना है
हाय जो लेता औरों का
आ से उसको जलना है , चाहे मगरूर-----

कंस और रावण भी न रहे
तानाशाह मुँह की हैं खाए
न उछल तू इतना रे मूरख (2)
बदलने वाला ज़माना है - चाहे मगरूर हो कितना ------

ऊँट को नाज़ होता है
जो अपने कद को देखता है
जनता नहीं है एक दिन तो
पहाड़ के नीचे आना है , चाहे मगरूर हो कितना --------
हो तो रहा भारत निर्माण -
गिरते रहे हैं नये मकान
कैसे बने यह देश महान
गद्दी पे जब हो शैतान -----
साधु जहाँ पर हों लांछित
और दुष्ट का हो गुणगान
कैसे बने यह देश महान
गद्दी पे जब हो शैतान -----
परंपरा पर जब धूल पड़ी
जाने न कोई जो स्वाभिमान
कैसे बने यह देश महान
गद्दी पे जब हो शैतान -----
दानव जहाँ पे समृद्ध हो
मानव का पता हो शमशान
कैसे बने यह देश महान
गद्दी पे जब हो शैतान -----
तोते में क़ैद उसकी जान
मारे तोता तो बचेगा प्राण
आओ हटा दें यह शैतान
फिर से बने भारत महान--------
उत्तर प्रदेश में जो तबाही चल रही है उस पर कुछ पंक्तियाँ

सेक्युलर- सेक्युलर
तेरा हो जाए रे बंटाधार
दूजे के घर आग लगा कर
रोटी सेंके हर बार ;
सेक्युलर- सेक्युलर
तेरा हो जाए रे बंटाधार-----------

अपनो का जब हुआ सगा न
औरों का तू कैसे होगा
कुर्सी का नशा है ऐसा छाया
क्या क्या पाप तू कर लेगा
लड़ते - कटते लोगों को देख
भरता है तू किलकार;
सेक्युलर- सेक्युलर
तेरा हो जाए रे बंटाधार-----------

जब तक रहेंगे तेरे जैसे
चैन-ओ - अमन कहाँ होगा
ख़ुदग़रजी से तेरा कह दूँ
कब्रस्तान यह वतन होगा
जब तक तू ज़िंदा धरती पर
जीना है सबका दुश्वार
सेक्युलर- सेक्युलर
तेरा हो जाए रे बंटाधार-----------
नियम यह कहते हैं कि कल अर्थात 14 सितंबर के दिन "हिन्दी दिवस" है . बड़े ही धूम धाम से हर कार्यालय में सभाएँ आयोजित होंगीं - प्रतियोगिताएँ होंगी- फिर अगले वर्ष तक 364 दिन "अँग्रेज़ी दिवस" पूरी ईमानदारी से और "हिन्दी दिवस" बस काम निपटाने के लिए - तो इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है यह कविता आप सब के लिए --

यह लो रेभाई आ गया फिरसे 
हिन्दी का एक और श्राद्ध दिवस,
चलो सुनें भाषण साहबों की
क्यों कि आज है हिन्दी दिवस //------
बीत गये हैं वर्ष चौंसठ पर
हिन्दी आज भी लंगड़ी है ;
अँग्रेज़ी में जो बात करे यहाँ
हस्ती तो बस उसकी तगड़ी है,
हिन्दी के पक्ष बोले जो
कहे उसे बॉस चूप खामोश ,
चलो सुनें भाषण साहबों की
क्यों कि आज है हिन्दी दिवस //------
नियमों का अनुपालन करे वह
जो होता है कार्यालय प्रमुख,
पर सच्चाई तो यह है भाई
अँग्रेज़ी उसको देता है सुख;
तर्क यह देते हैं यह मूरख
बिन अँग्रेज़ी के मिले न यश
चलो सुनें भाषण साहबों की
क्यों कि आज है हिन्दी दिवस //------
एक समिति है संसद की
जिस पर है हिन्दी का जिम्मा,
है सत्य- वही बनाए हिन्दीका कीमा
हिन्दी देश में हो गयी है तहस नहस
चलो सुनें भाषण साहबों की
क्यों कि आज है हिन्दी दिवस //------
विदेशीनी का कर पद लेहन
नाज़ करे जहाँ नेता
देश भाषा का हाल बताओ
ऐसा न होता तो कैसा होता
भाड़ में जाए देश और भाषा
मेकले-पुत्र करते हैं उद्घोष
चलो सुनें भाषण साहबों की
क्यों कि आज है हिन्दी दिवस //------
नियम यह कहते हैं कि कल अर्थात 14 सितंबर के दिन "हिन्दी दिवस" है . बड़े ही धूम धाम से हर कार्यालय में सभाएँ आयोजित होंगीं - प्रतियोगिताएँ होंगी- फिर अगले वर्ष तक 364 दिन "अँग्रेज़ी दिवस" पूरी ईमानदारी से और "हिन्दी दिवस" बस काम निपटाने के लिए - तो इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है यह कविता आप सब के लिए --

यह लो रेभाई आ गया फिरसे 
हिन्दी का एक और श्राद्ध दिवस,
चलो सुनें भाषण साहबों की
क्यों कि आज है हिन्दी दिवस //------
बीत गये हैं वर्ष चौंसठ पर
हिन्दी आज भी लंगड़ी है ;
अँग्रेज़ी में जो बात करे यहाँ
हस्ती तो बस उसकी तगड़ी है,
हिन्दी के पक्ष बोले जो
कहे उसे बॉस चूप खामोश ,
चलो सुनें भाषण साहबों की
क्यों कि आज है हिन्दी दिवस //------
नियमों का अनुपालन करे वह
जो होता है कार्यालय प्रमुख,
पर सच्चाई तो यह है भाई
अँग्रेज़ी उसको देता है सुख;
तर्क यह देते हैं यह मूरख
बिन अँग्रेज़ी के मिले न यश
चलो सुनें भाषण साहबों की
क्यों कि आज है हिन्दी दिवस //------
एक समिति है संसद की
जिस पर है हिन्दी का जिम्मा,
है सत्य- वही बनाए हिन्दीका कीमा
हिन्दी देश में हो गयी है तहस नहस
चलो सुनें भाषण साहबों की
क्यों कि आज है हिन्दी दिवस //------
विदेशीनी का कर पद लेहन
नाज़ करे जहाँ नेता
देश भाषा का हाल बताओ
ऐसा न होता तो कैसा होता
भाड़ में जाए देश और भाषा
मेकले-पुत्र करते हैं उद्घोष
चलो सुनें भाषण साहबों की
क्यों कि आज है हिन्दी दिवस //------
जब मैं कॉलेज में दाखिल हुआ तभी से देश की हालत को बिगड़ा हुआ पाया - क्यों कि कहने को तो देश स्वतंत्र हो गया पर अँग्रेज़ों और ख़ास कर के मेकाले के मानस पुत्र जीतने भी थे उन्हे देश और देश वासियों को नोच कर खाने के लिए अनुज्ञा पत्र प्राप्त हो गया था- तब से आज तक मन ही मन मैं घुटता रहता था की क्या देश में सुधार नहें आएगा. लो आख़िर वह समय आ गया और वह साधन भी हमें प्राप्त हो गया "श्री नरेंद्र मोदी" के रूप में- आज उनका जन्म दिन है- उनके विचारों को मैंने जहाँ तक समझा है उसमें अपनी सोच मिला कर एक गीत प्रस्तुत है- मोदी जी के लिए उपहार के रूप में------ आशा है आप भी इसे पसंद करेंगे - पुराने गीत
छोड़ो कल की बातें - कल की बात पुरानी" की ढूंने मलिखाल गया है यह गीत - पढ़िए

सोचो देश की बातें - मातृभूमि है बचानी
अब तो मिलेगी सज़ा उन सबको
करते थे जो शैतानी- हम हिन्दुस्तानी -हम हिन्दुस्तानी ---------

जो सब है गद्दार उन्हे पहचान चुके है
कमज़ोर जो देश की जड़ को करते रहे हैं
खोखली क़ी घर के जिन्होने दीवारों को
याद रखो रे भाई उन उन सबके चेहरो को
राष्ट्रहित में ध्यान है अपना
जान लो तुम बात इतनी - हम हिन्दुस्तानी -हम हिन्दुस्तानी -----

छाया था तम अन्यायका देश में कब से
आशा जगी है मोदी जी आए हैं रे जब से
बजरंगी को देख के भूत प्रेत जैसे भागे
वैसे होंगे सारे देश के गद्दार इनके आगे
देश को इनके हाथ में सौंपे-
लिखें नई कहानी, हम हिन्दुस्तानी - हम हिन्दुस्तानी ---

गाँव गाँव में चमके बिजली मोदीके दमसे
हर होंठों पर तो खिले हँसी मोदीके दमसे
सुंदर से बगिया को सीँचे जैसे कोई माली
करेंगे मोदी जी देश की इस तरह रखवाली
देश की नैय्या पार लगेगी -
लहरें ऊँची हों कितनी, हम हिन्दुस्तानी -हम हिन्दुस्तानी ---------

देश का नाम किया ऊँचा जग में मोदी जी ने
ऐसा पुरुष न जन्मा अब तक इस भूमि में
इनके संग आओ रे भैया हम सब हो जाएँ
जन जन हो खुश हाल चलो नाचें और गाएँ
नेकी ही एक राह है इनकी,
राहें चाहे हो कितनी- हम हिन्दुस्तानी -हम हिन्दुस्तानी ---------
मित्रों आप जानते हैं की पिछले कुछ समय से मैं देश की हालत पर अलग अलग सन्दर्भ में पेरोडी लिखता आ रहा हूँ- आज एक मित्र ने अनुरोध किया की नेता और समजविरोधी अपराधियों के अपवित्र प्यार पर एक पेरोडी लिखें. मैने न सोच की इस के लिए 'तेरा मेरा प्यार अमर' से बेहतर और कौन सा गीत होगा - तो लीजिए आप सब के और खास करके परम मित्र नितिन काटकर जी के लिए प्रस्तुत है यह पेरोडी

तेरा मेरा प्यार अमर - सरकार अपनी जो चाहे तू कर
तेरी खिदमत में हम है रे - लूट किसी को या खून कर----
वन पाइंट प्रोग्राम है अपना - मरते दम तक सत्ता भोगना
कोई कुछ भी कहे है सहना - चाहे कहे कुत्ता या कमीना
देना साथ तू सदा हमरा- कहता हूँ हाथ जोड़कर
तेरी खिदमत में हम है रे - लूट किसी को या खून कर----
मेरी माँ * को तू डायन कहे- दुश्मन देश के गीत गाये
फिर भी देंगे क्लीन चिट तुझे शर्म कभी कहो क्यों आए
ज़िंदा हूँ तुझको मस्का मार कर -तू ही है मेरा परमेश्वर
तेरी खिदमत में हम है रे - लूट किसी को या खून कर----
भड़काऊ भाषण चाहे तो मार सेक्युलर तू कहलाए
कम्युनल वह सारे बंदे यहाँ माँ बहनों को जो बचाए
पुलिस क़ानून है जेब के अंदर- कोई फ़िक्र तू नहीं कर
तेरी खिदमत में हम है रे - लूट किसी को या खून कर----
मित्रों आप जानते हैं की पिछले कुछ समय से मैं देश की हालत पर अलग अलग सन्दर्भ में पेरोडी लिखता आ रहा हूँ- आज एक मित्र ने अनुरोध किया की नेता और समजविरोधी अपराधियों के अपवित्र प्यार पर एक पेरोडी लिखें. मैने न सोच की इस के लिए 'तेरा मेरा प्यार अमर' से बेहतर और कौन सा गीत होगा - तो लीजिए आप सब के और खास करके परम मित्र नितिन काटकर जी के लिए प्रस्तुत है यह पेरोडी

तेरा मेरा प्यार अमर - सरकार अपनी जो चाहे तू कर
तेरी खिदमत में हम है रे - लूट किसी को या खून कर----
वन पाइंट प्रोग्राम है अपना - मरते दम तक सत्ता भोगना
कोई कुछ भी कहे है सहना - चाहे कहे कुत्ता या कमीना
देना साथ तू सदा हमरा- कहता हूँ हाथ जोड़कर
तेरी खिदमत में हम है रे - लूट किसी को या खून कर----
मेरी माँ * को तू डायन कहे- दुश्मन देश के गीत गाये
फिर भी देंगे क्लीन चिट तुझे शर्म कभी कहो क्यों आए
ज़िंदा हूँ तुझको मस्का मार कर -तू ही है मेरा परमेश्वर
तेरी खिदमत में हम है रे - लूट किसी को या खून कर----
भड़काऊ भाषण चाहे तो मार सेक्युलर तू कहलाए
कम्युनल वह सारे बंदे यहाँ माँ बहनों को जो बचाए
पुलिस क़ानून है जेब के अंदर- कोई फ़िक्र तू नहीं कर
तेरी खिदमत में हम है रे - लूट किसी को या खून कर----
मित्रों आप जानते हैं कि पिछले कुछ समय से मैं देश की हालत पर अलग अलग सन्दर्भ में पेरोडी लिखता आ रहा हूँ- आज एक मित्र ने अनुरोध किया , देश में इतनी बदहाली होने पर भी कथित रूप से समाज को दिशा देनेवाली मीडीया क्यों नहीं अपना काम करती सही रूपसे और ईमानदारी से- तो चलिए इस पर भी एक पेरोडी हो जाए - बहुत ही लोक प्रिया गीत " सवेरे वाली गाड़ी से चले जाएँगे" पर आधारित है यह पेरोडी - संजोग देखिए फिल्म का नाम है "लाट साहब' और देश में मीडीया वाले भी तो अपने आपको लाट साहब ही समझते हैं न-

खाएँगे जिसके माल उसके गुण तो गाएँगे
हम मीडियावाले है (2) किसी का न सुनेंगे ----------

यह दुनिया दो दिनोंकी - दो दिनों का है जीवन
समय है बहुत कम - इकट्ठा करता जा रे धन
धन-- धन--- हाय -- हाय - हाय हाय
करते हैं काले धंधे जो वही तो खिलाएँगे
हम मीडियावाले है (2) किसी का न सुनेंगे ----------

यह देश जाए भाड़ में - चूल्‍हे में यह समाज
मतलब न किसीसे - निकलेंगे अपना काज
काज - काज --- काज - हाय हाय
मीडिया का धौंस देके हाथ में न आएँगे
हम मीडियावाले है (2) किसी का न सुनेंगे ----------

अर्थी उठाएँ धर्म की - भाषा को देंगे कब्र
यह सच है जनता देश की करती रहेगी सब्र
सब्र -- सब्र - सब्र - हाय हाय
इस कमज़ोरी का फायदा हम तो उठाएँगे
हम मीडियावाले है (2) किसी का न सुनेंगे ----------

जब जब बढ़ेंगे ज़ुल्म और होंगे अत्याचार
बाँछें खिलेंगी अपनी - भरेगा अपना भंडार
भंडार -- भंडार- भंडार -- हाय हाय
मिलता जहाँ शिकार नोच नोच खाएँगे
हम मीडियावाले है (2) किसी का न सुनेंगे --------